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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

नज़्म , आप गलत समझ रहीं हैं मुझे

      नमस्कार , मैने एक नयी नज़्म कहने की चाहत की है इस नज़्म के किरदार में वो सारे मर्द मुकम्मल तौर पर सामिल हैं जो इस नज़्म से वाबस्ता ख़्याल रखते हैं | नज़्म देखें के 


आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


सारे मर्द एक जैसे होते हैं 

ये मत कहिए 

मेरी गुज़ारिश है 

मत कहिए 

मैं नही हूं उन मर्दो जैसा 

जो ग़ुरूर महसूस करे 

किसी महिला को खुद से कमतर बताकर 

मैं नही हूं 

उन जैसा जो सोचते हैं 

किचन सिर्फ औरतों का है 

मैं नही हूं 

यकीनन मैं नही हूं 


मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

कि वो फला खाना नही बना पाती 

कि उसे सिर पर पल्लू नही रखना 

कि उसे किसी व्रत में यकीन नही है 

कि वो बच्चे की जिम्मेदारी नही चाहती 

तो क्या हुआ 


इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो कैसी दिखती है 

मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो वर्जिन है या नहीं 

मुझे यकीनन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता 

मुझे अगर फर्क पड़ता है तो सिर्फ इससे 

कि वो इंसान कैसी है 

अपने वालिदैन के बारे में क्या ख्याल रखती है 

उन्हें कितना अहमियत देती है 

अपने ख्वातिन होने पर गर्व करती है या नहीं 

अपने हुनर पर यकीन रखती है या नहीं 

अपने फैसले खुद करने की सलाहियत रखती है या नहीं 

वो आजाद ख्याल है या नहीं 

अपनी खुदमुख्तारी को अपना हक समझती है या नहीं 

उसे अच्छे इंसानों की समझ है या नहीं 


मै उसे दुनियां का डर दिखाकर डराना नही चाहता 

मै उसे किसी रिश्ते के बंधन में बांधना नही चाहता 

मै उसके अरमानों के परों को काटना नही चाहता 

मैं नही हूं उन मर्दों जैसा 

यकीनन मैं नही हूं 

आप गलत समझ रहीं हैं मुझे 


     मेरी ये नज़्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 10 सितंबर 2022

नज्म , बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं

      नमस्कार , आज मैने ये नज्म लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं नज्म कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा कमेंट्स के माध्यम से |


बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं 


बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं 

वों तो कहकहे लगाती हैं जमाने के सामने 

इनकार कर देती हैं उन रवायतों को मानने से 

जो उन्हें रोकते हैं जमाने के साथ कदम मिलाकर चलने से 

अपने वजूद को पहचानने से 

वो बड़ी बेबाकी से चिल्लाकर ना कहतीं हैं 

उन लोगों को जो उन्हें बोलने नही देते 

गाने नही देते हंसने नही देते 

वो काट डालती हैं ऐसे पिंजरों को जो उन्हें कैद करना चाहते हैं 

वो अपने चेहरों को नकाबों से ढकती नही हैं 

वो चार लोगों के कुछ कहने की परवाह नही करती 

वो किसी से डरती नही हैं 

वो परवाह करती हैं तो बस अपनी 

अपनी आजादी की 

अपनी खुदमुख्तारी की 

एक अजीब सी बगावत होती हैं उनमें 

गज़ब की अना होती है उनमें 

नही , ऐसी नही होतीं 

बेपर्दा औरतें 


     मेरी ये नज्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शनिवार, 14 मार्च 2020

नज्म , आओ दिल्ली दिखाउं मैं तुमको

      नमस्कार , 24 और 25 फरवरी को जब अमेरिका के राष्टपति डोनाल्ड ट्रंप सह परिवार दो दिवसीय भारत दौरे पर आए थे तब उत्तरपुर्वी दिल्ली में हुए दंगों में अब तक 38 से ज्यादा लोगों के मौत कि खबर हैं और 200 से ज्यादा लोग घायल हैं जिसमें 60 से ज्यादा दिल्ली पुलिस के जवान है साथ हि दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतनलाल शहिद हुए हैं| | इस दंगे कि गंभीरता को इस बात से समझीए कि इसमें 70 से ज्यादा लोगों को बंदुक कि गोलीयां लगी हैं और आईबी के यूवा ऑफिसर अंकित शर्मा को दंगाई भीडं ने उनके घर से खिचकर लेजाकर आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के घर मे लेजाकर मार डाला और उनकी लाश को नालें में फेंक दिया | मैने जब अंकित कि मां को चिख चिख कर रो कर सारी घटना मिडिया को बताते हूए बेब न्युज मिडिया पर सुना तो वह रोती बिलकती हुई आंशुओ से भरी हुई आंखे मेरे दिल में घर कर गई तब मैने एक नज्म कहने कि कोशिश की है कि

आओ दिल्ली दिखाउं मैं तुमको

खून के छींटे दिखाउं मैं तुमको
लाशों की गिनती बताऊं मैं तुमको
जिनके बेटे कत्ल किए गए हैं
उन मांओ कि चीखें सुनाउं मै तुमको
आओ हकिकत बताउं मै तुमको
आओ दिल्ली दिखाउं मै तुमको

नफरत कि आग लगाई गई थी
भीडं एक धर्म के खिलाफ भडंकाई गई थी
घरों से खिंचकर बेटों कि जान लेली गई है
चुन चुन कर मंदिर जलाई गई थी
मांए रो रो कर बेसुध हुई हैं
अब कितने आंशु दिखाउं मै तुमको

सारा शहर पत्थरों से भर गया है
डर तो जहन में घर कर गया है
वो मां खुद को संभालेगी कैसे
जिसका बेटा कल मर गया है
ऐसी कितनी दास्तानें हैं
बोलो कितनी सुनाउं मैं तुमको

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      इस नज्म को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

नज्म , मेरी जाने तमन्ना

       नमस्कार , मैने एक नयी नज्म लिखने कि कोशिश कि है मुझे यकिन है कि आप इससे जुड़ पाएंगे

मेरी जाने तमन्ना

मेरी जाने तमन्ना
तजमहल जैसी कोई ख्वाईश मत रख मुझसे
क्योंकि , मै इसे पुरा नही कर पाउंगा
ये मै भी जानता हुं , तु भी

हॉ तुम चाहो तो एक घर बना सकता हुं
तुम्हारे लिए जिसमें
मोहब्बत कि बुनियाद होगी
यकिन कि मजबुत ईटें लगाकर
वादों का सिमेंट लगाकर
चार दीवारी बनाएंगे खुशियों कि
और छत बन जाएंगी सारी उम्मीदें
घर को सुनहरे मुश्तकबिल के सपनों से सजा कर

चिरागों को दहलीज पर रोशन करके
नए जीवन का आगाज करें
और अपनी मोहब्बत को मुकम्मल कर दें
जो पाकिजा मोहब्बत
अक्सर नसीब नही होती महलवालों को भी
मेरी जाने तमन्ना

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नज्म , हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले हमारे देश में खबरों और सीएए एनआरसी के विरोध प्रदर्षनों में पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज कि एक नज्म का जिक्र बारहा हो रहा था और मुझे निजी रुप से यह लगजा है कि इस नज्म कि मुल भावनाओ का सार बदलकर यहा भारत में एक मजहबी उन्माद फैलाने कि कोशिश कि जा रही थी तो मैने इसी को देखते हुए एक नज्म कही थी | नज्म यू है कि

हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

हम दिखाएंगे
हम मोहब्बत करके दिखाएंगे
एक दिन वो भी आएगा जब हम जीत जाएंगे
नफरत के सारे बादशाह मिट्टी में मिल जाएंगे

चाहे जितनी स्याह रात हो
तिरगी हो चाहे जितनी घनी
हम जुगनू सच के फरिश्ते हैं
उजाला करके उड़ जाएंगे

ना कोई खौफ ना दहशत होगी
ना कोई नारा ना परचम होगी
सिर्फ अमन की सत्ता होगी
जो वादा किया है अपनों से
वो वादा भी निभाएंगे

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      इस नज्म को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

शनिवार, 21 सितंबर 2019

नज्म, बोलो क्यों लाज नही आयी तुमको

      नमस्कार, ये तो पुरी दुनिया जानती है कि हमारे देश भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बढाने वाला एक ही देश है और वो है पाकिस्तान और पाकिस्तान केवल भारत के लिए ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है | पाकिस्तान और उसके प्रयोजतीत आतंकवाद से हमारे देश भारत की सेना लड़ाने मे सक्षम है और लड ही रही है मगर यदि हमारे देश में ही रहकर हमारे देश के कुछ नेता हमारे देश का ही खाकर हमारे ही देश कि सेना का अपमान करते हैं और राष्ट की एकता को आघात पहुंचाते हैं तो एक कवि एक शायर को इस तरह कि नज्म कहने के लिए विवश कर देते हैं

बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

दशकों से कश्मीर को धू धू के जलाया तुमने
कश्मीरी पंडितों को उनके घर से भगाया तुमने
मारे हैं सैनिकों के गालों पर जो तमाचे तुमने
कश्मीर में सेना पर पत्थर भी फेकवाया तुमने
तिरंगे से लिपटे हुए वीर सपूतों को भ्रष्टाचारी कहके
शहीदों की शहादत का भी अपमान किया है तुमने
तुम्हारे ऐसे देशप्रेम की हो ढेरों बधाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

कभी कहते हो आतंकवाद का मजहब नहीं होता है
लेकिन फिर भी दुनिया को हिंदू आतंकवाद तुम ही बताते हो
जिस राम का नाम बसता है भारत के हरेक कण-कण में
उस राम के एक नाम को युद्धघोष तुम बताते हो
असली आतंकवाद देख चुकी है पूरी दुनिया की नजरें
क्या नहीं देता है दिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

हरेक रंग का फूल इस गुलिस्तान में शामिल है
जिस एक रंग से नफरत है तुम्हें कयामत तक
वह एक रंग भी मेरे तिरंगे की पहचान में शामिल है
जब भी कुछ कहते हो नफरत से ही कहते हो तुम मेरे लिए
यह जहरीली भाषा बोलो किसने है सिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

बुधवार, 14 अगस्त 2019

नज्म, मेरे कश्मीर

      नमस्कार, आप सभी को हमारे भारत देश के स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त की हार्दिक शुभकामनाएँ | जैसा की हम सब जानते हैं कि अब जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटा दी गई है और इसके हटते ही जम्मू कश्मीर को दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया है जिसमे से एक लद्दाख और दुसरा जम्मू कश्मीर है | इस सुनहरे बदलाव के साथ ही पिछले 70 सालों में ऐसा पहली बार होगा जब पूरे कश्मीर में पूरे जोश के साथ भारतीय तिरंगा झंडा लहराया जाएगा और हमारे देश की स्वतंत्रता का यह पावन और गौरवमयी पर्व मनाया जाएगा |

नज्म, मेरे कश्मीर
तिरंगा झंडा 
     मगर अगर एक बार दिल में किसी के लिए जहर घोल दिया जाए तो फिर उसे मिटने में वक्त लगता है और कश्मीरी आवाम के मन में तो हिन्दुस्तान के लिए 70 सालों से जहर घोला गया है तो जाहिर सी बात है कि नयी शुरुआत और नयी विचारधारा बनने में वक्त लगेगा | मगर यह समय मिलजुलकर आजादी का जश्न मनाने की है | और कश्मीर के लिए आज पुरा हिन्दुस्तान क्या सोचता है क्या कहना चाहता है मै ने एक छोटी सी नज्म के रुप में लिखने कि कोशिश की है, नज्म का उनवान है
मेरे कश्मीर
शहादत आजाद की गांधी का ईमान बोल रहा हूं
मेरे कश्मीर में तेरा हिंदुस्तान बोल रहा हूं
किसी जन्नत से कम नहीं है तेरी घाटी
अब तक मयस्सर हुई है सिर्फ तुझे बर्बादी
तू भी तो चाहता है अपनी खुशहाली
तुझे भी तो चाहिए आतंक से आजादी
तेरे खातिर ही गई है शहीदों की जान बोल रहा हूं
मेरे कश्मीर में तेरा हिंदुस्तान बोल रहा हूं
तू तो भारत की तरक्की का नया दस्तक है
तू तो भारत का अकेला मस्तक है
तेरे आंचल से निकलती है मेरी मां गंगा
तेरा हिमालय पर्वत तो मेरा रक्षक है
मैं अपने लोकतंत्र की आबादी का अभिमान बोल रहा हूं
मेरे कश्मीर में तेरा हिंदुस्तान बोल रहा हूं
बडी शिद्दत से खुदा ने तुझे सजाया है
बाबा बर्फानी ने तुझे ही घर बनाया है
तेरे आशियाने में मने रमज़ान ईद दिवाली
तेरे मीठे सेबों ने पूरे भारत को ही ललचाया है
मैं गुरुग्रंथ बाइबल गीता कुरान बोल रहा हूं
मेरे कश्मीर में तेरा हिंदुस्तान बोल रहा हूं
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बुधवार, 7 अगस्त 2019

नज्म, ये सावन अच्छा नही लग रहा है मुझे

    नमस्कार, सावन के इस महीने में टप टप गिरती हुई बरसात की बूंदों को देखते हुए अपने घर या किसी चाय की टपरी के नीचे बैठकर चाय पीने या भुट्टे खाने का आनंद ही मन को गुदगुदा देने वाला है | इसी तरह के एक दिन में मरे मन में एक नज्म ने जन्म लिया उसका कुछ टूटा फूटा हिस्सा आपसे साझा कर रहा हूँ

एक बात बताऊं तुम्हें
ये सावन अच्छा नही लग रहा है मुझे

पिछले साल का सावन कितना खुसूसि था
जब हम दोनों एक शहर में थे
भले हम कभी एक साथ नही रहे
मगर हम आस पास तो थे
मगर अब नजाने कहां हो तुम
और इस जाने पहचाने अपने शहर में हूं मैं
पर फिर भी
ये सावन अच्छा नही लग रहा है मुझे

जाने क्यों एहसास आहत हुए हैं
ये बरसात की ठंडक अब राहत नहीं देती मुझे
एक तनहा सी खामोशी है
दिल और जहन के दरमिया
सब कुछ है कोई कमी नही
मगर फिर भी
ये सावन अच्छा नही लग रहा है मुझे

शायद तुम्हें ये एहसास न सताते हो
या शायद तुम्हें भी

पर
ये सावन अच्छा नही लग रहा है मुझे

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सोमवार, 8 जुलाई 2019

नज्म, कितनी गरीब है ज़िन्दगी

       नमस्कार, जब से मैने होश संभाला है तब से लेकर आज तक जिंदगी ने मुझे जो भी दिया या है जो कुछ भी मैने महसूस किया है उऩ सभी एहसासो को एक नज्म में पिरोने की कोशिश की है मै अपनी इस कोशिश में कितना कामयाब हुआ हूं ये आप मुझे बताएंगे, अब यहां से आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है |

कितनी गरीब है ज़िन्दगी

हर घडी सांसों की मोहताज है
कितनी गरीब है ज़िंन्दगी
कभी आंसू कभी मुस्कान
कभी काम कभी आराम
कितनी अजीब है ज़िंदगी

जब जिसको चाहती है
कई नाच नचा देती है
पल में दौलत से मालामाल
किसी को तो किसी को
एक एक निवाले का
मोहताज बना देती है
फिर भी सबको यहां
कितनी अजीज है ज़िन्दगी

किसी को बेशुमार फन
से नवाजा है तो
तो किसी को अधूरे मन
से तन नवाजा है
कभी नेकी तो कभी पापा है
किसी की ख़ातिर श्राप है
फिर भी अपनी अपनी
नसीब है ज़िन्दगी

     मेरी ये नज्म अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन नज्म को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

बुधवार, 2 जनवरी 2019

नज्म, चाहतें यही हैं मैं आपको चाहता हूं

     नमस्कार , मेरी ये एक और छोटी सी नज्म जिसे मै आज आपके समक्ष सर्वप्रथम रख रहा हूं और चाहता हूं की आप इसे भी अपना थोड़ा सा वक्त देकर पढ़े | ये नज्म भी मैने दिसंबर 2012 में लिखी थी, इसलिए इसमें मेरी लेखनी छोटी एवं अनुभव रहित लग सकती है |

चाहतें यही हैं मैं आपको चाहता हूं

खिदमत में आपके अर्ज करता हूं
चाहतें यही हैं मैं आपको चाहता हूं

चांदी जैसे नही सोने जैसा आपका मुखड़ा है
मैं मुखड़े पर नहीं आपकी अदाओं पर मरता हूं

इंकार की कोई सूरत तो नहीं मगर फिर भी   परखता हूं
मैं आपके जवाब से नहीं आप की बेवफाई से डरता हूं

चाहे कुछ भी नहीं मिला फिर भी हिचकता नही मै
बस ऐसे ही बेइंतहा मोहब्बत को तरसता हूं

      मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

रविवार, 30 दिसंबर 2018

नज्म, हमारे मोहब्बत का तो कबाड़ा सा हो गया है

     नमस्कार प्रणाम अर्पित करता हूं आपको , ये एक और छोटी सी नज्म पेशे खिदमत है मुझे उम्मीद है कि मेरी ये रचना आपको आनंदित करेगी |

हम निगाहों के लहरों में बहते जा रहे हैं
नजाने किनारा यूं खो सा गया है

सहते जा रहे हैं हम बेवफाई के दर्दों को
मरहम हमारा कहीं खो सा गया है

बस्तियां बसेंगी मेरी कब्र पर
प्रियतम हमारा हमसे दूर हो सा गया है

आंखें बिछी हैं आपके सफर पर आशिकों की
हमारे मोहब्बत का तो कबाड़ा सा हो गया है

      मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

नज्म, कही गुस्ताखी न बन जाए यह जवानी

       नमस्कार प्रणाम , दिसंबर 2012 की 10 रचनाओं की अगली कड़ी में मै आपके दयार में एक नज्म प्रस्तुत कर रहा हूं आपके अपनाव की आशा है |

आज जिंदगी लिख रही है यह एक नई कहानी
होश में आ जा मस्ताने कहीं गुस्ताखी न बन जाए यह जवानी

रोमटे सिहर उठे हैं देखते ही यह रवानी
जंग है हाथ में शमशीर है तो इतिहास को दे दे एक नई मुंह जबानी

चाहते तो बहुत थी पर भूल गई वह दीवानी
न जाने कौन छोड़ गया उसे मेरी यादों में महकती है जैसे ही कोई रात रानी

कल की परवाह है किसे है एक जिंदगानी
इसे जी ले या बहा दे ऐसे जैसे बहता है नदियों में पानी

आज काली रात है तो कल होगी सहर सुहानी
उम्मीद ना छोड़ तू यही है जो कल होंगी बढ़कर सयानी

दर्द दिल में जो छुपा है ,  तू जानता है हमें आंसू नहीं बहानी
बता दे दुनिया वालों को ना देख तू तारे आसमानी

    मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

रविवार, 9 दिसंबर 2018

नज्म, कौन लिखता है मेरी किस्मत

   नमस्कार , मेरे अवसाद से भरे मन की उपज ये नज्म जिसे मै आज आपके दयार में आपके हवाले करता हूं |

कौन लिखता है मेरी किस्मत

कौन लिखता है मेरी किस्मत
जरा उसका नाम बता दो
एक बार मैं उससे पूछना चाहता हूं
आखिर तुम यह राज बता दो
क्या खता मुझसे हुई थी
कहां और कब हुई थी
जो तुमने इतनी तकलीफ है लिखी
इतनी ठोकरों का फरमान सुनाया
यह दशा हो गई है मेरी
कि अब नहीं होता यकीन यकीन पर भी
कांपते हैं पांव मेरे जमीन पर भी
न जाने कहां से तेरा लिखा कोई पत्थर आए
और मुझे झकझोर कर फिर
गम की कोई वजह दे जाए
मैं पूछना चाहता हूं तुझसे
आखिर कौन लिखता है मेरी किस्मत
जरा उसका नाम बता दो
एक बार मैं उससे पूछना चाहता हूं

    मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

सोमवार, 25 जून 2018

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

     नमस्कार ,  नज्मों का मिजाज हमेशा से ही यू रहा है के कोई भी गमजदा , दिलफेक , इश्कजदा इंसान नज़्मों को पड़ता है और उन्हें अपने दिल के बेहद करीब पाता है |   नज़्मों के जरिए हमेशा से ही ऐसे विषय उठाए गए हैं जो समाज की भीड़ में कहीं खो से जाते हैं |  चाहे वह नारी शोषण हो , कन्या भ्रूण हत्या हो , बाल विवाह , बाल मजदूरी हो या फिर मोहब्बत हो तो |

      आज मैं जो नज़्म पेश करने जा रहा हूं इसे मैंने बस चंद दिनों पहले ही लिखा है | मेरी यह नज्म एक किताब की कहानी कहती है | नज्म का उनवान है -

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

कोई दिलकश नजारा होती
किताब होने से बेहतर था
कोई दिलकश नजारा होती
तो लोग निगाह लगाकर देखते तो सही
कुछ इल्म जुटाने की जद्दोजहद करते
मगर
किताब हूं
वह भी गुजरे हुए लम्हों की
संजीदा सी
उधड़े हुए जिल्ड वाली
गुमसुम मिजाज वाली
अपने कोई मोहब्बत की दास्तान तो हूं नहीं
तभी
शायद

         मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

नज्म , दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

      नमस्कार , हिन्दी उर्दू कविता जिसे साहित्यिक विधा में नज्म कहा जाता है किसी पहचान का मोहताज नही है | भारतीय सिनेमा में नज्में दशको से मुख्य अभिनेताओ , अभिनेत्रीयो के द्वारा पर्दे पर गायी जा रही है और दर्शकों के द्वारा सूनी एवं पसंद की जा रही है | बहरहाल नज्मो का चलन आज के वर्तमान सिनेमा में खत्म हो गया है |

मैने हाल ही में एक नज्म लिखी है जिसे आप सभी मित्रों के हवाले कर रहा हूं , आप सब की दुआए चाहता हूं -

नज्म , दिल की बात
नज्म , दिल की बात 
दिल की बात हो या दिमाग की बात हो

दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो
खामोशी है इसीलिए अब तक
ये तय नहीं है

अगर जो दिल की बात हो
तो मुमकिन है कि दिमाग को गवारा ना हो
मगर जो बात न हो तो गुजारा ना हो
चलो तो फिर तय रहा के
दिमाग की बात हो

मगर - मगर जो दिमाग की बात हो
दिल ये कैसे माने
ये तो नादान है ना
दुनियादारी से अनजान है ना
ये तो चाहता है के एक और मुलाकात हो
मगर ये तो दिमाग को मंजूर नहीं

बहुत सोच समझकर सोच रहा हूं
न जाने कब से
और सवाल भी अभी वही है
के किसकी बात हो
दिल की बात हो
या दिमाग की बात हो

     मेरी नज्म के रुप में ये छोटी सी पेशकश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |          

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