शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

ग़ज़ल, तुम्हारे शहर में लोग खाना फेंकते हैं

    नमस्कार, आज मै आपके सामने मेरी सात गजलों की सीरीज लेकर आया हूं जिन्हें मैने पिछले महीने में लिखा है उन्हीं गजलों में से चौथी गजल यू है के

इस तरह से वो नए कबूतर को दाना फेकते हैं
जिस तरह से शिकारी निशाना फेकते हैं

मेरे शहर में अब भी कुछ बच्चे भूख से मर जाते हैं
मैंने सुना है तुम्हारे शहर में लोग खाना फेकते हैं

इस कदर डिलीट कर दिया है उसने हमें अपनी  प्रोफाइल से
जिस कदर लोग सामान पुराना फेकते हैं

जिन लोगों को गजल तो छोड़िए शायरी तक नहीं आती
वो लोग भी महफिल में आकर अंदाज ए शायराना  फेकते हैं

परखच्चे उड़ा दिए हैं उसने हमारे जज्बातों के
हम भी तनहा उसकी यादों का खजाना फेंकते हैं

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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