नमस्कार, आज मै आपके सामने मेरी सात गजलों की सीरीज लेकर आया हूं जिन्हें मैने पिछले महीने में लिखा है उन्हीं गजलों में से तीसरी गजल यू है के
सब सुकून का मंजर देख रहे हैं खंजर कौन देख रहा है
सब मुतमईन है बहती हुई हवाएं देखकर रेत में उठा हुआ बवंडर कौन देख रहा है
धूप का करिश्मा देखो के बरफ के पहाड़ जलाए जा रही है
सब सूखती हुई दरिया देख रहे हैं इंच इंच बढ़ता हुआ समंदर कौन देख रहा है
पहले हाथ काटेंगे फिर पांव काटेंगे फिर तब कहीं जाकर दुनिया अपाहिज होगी
अभी तो वो लोग जंगल देख रहे हैं ये रेगिस्तान बंजर कौन देख रहा है
लिपि पोती हुई डेहरी देखकर लोग खातूनो की खुशहाली का अंदाजा लगा लेते हैं
तन्हा हर कोई घर देखता है घर के अंदर कौन देखता है
मेरी ये गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |
इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें