नमस्कार , कुछ दो तीन महीने पहले लिखी एक छोटी सी कविता साझा कर रहा हूँ आपके आशीर्वाद की आशा है
पंखा आगए चीटियों को
प्राण मिल गए चीटियों को
पंखा आगए चीटियों को
भूमि की निर्माण बासी
जीव कि विनाश साथी
हर डगर , हर नगर में
मधु स्वाद तलाशती चीटियों को
कहीं जल में डूबकर तो
कहीं पांव के नीचे कुचल कर
प्राण गवाती चीटियों को
पहली बरसा जब है आती
जीवन मृत्यु सा लाती
चार पल के उड़ने का सुख
पंख उग आए चीटियों को
प्राण मिल गए चीटियों को
पंखा आगए चीटियों को
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इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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