नमस्कार, दिल के कुछ एहसान यू गजल में ढाल लेना आसान नही है मगर कोशिश कर रहा हूँ आपका साथ मिले तो मुझे आपका समर्थन मिले
जाने किसका साया था वो
मेरे दिल में कौन आया था वो
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आज जो मेरी जरुरत बन गया है जिस्म में लहू की तरह
कलतलक कितना पराया था वो
जरा सी देर में मैने सोच लिया खुदा ही जाने क्या क्या
जरा सी देर के लिए आगोश में आया था वो
जिस पायल को मामुली सा कहकर तुमने गुस्से में फेंक दिया
तुझे क्या बताउ मेरे मकान का किराया था वो
दोनों रुहे जब बेलिबास हुई तब मैने ये जाना
उसमे पुरा मै और मुझ में पुरा समाया था वो
टूटने की हद पर हमे दर्द बनकर आशुओ ने ये एहसास कराया
तनहा हम दोनों ने रिश्ता कमाया था वो
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इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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