नमस्कार, पिछले एक महीने के दरमिया में लिखे गए अपने कुछ मुक्तक आपकी महफिल में रख रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि आपको मेरे यह मुक्तक अच्छे लगेंगे
सिर्फ तुझी से मोहब्बत करने का वादा दे दूं
जिंदगी कोई बर्फी नहीं है के तुझे आधा दे दूं
खुश रहने का बस इतना ही वक्त मयस्सर हुआ है मुझे
कम मेरे पास ही है तुझे ज्यादा दे दूं
एक चहचहाता हुआ परिंदा मरा बैठा है
उधर से मत जाना एक दिलजला बैठा है
मसला ये है के महफिल में शेर पढ़ना है मुझे
और आज ही के दिन मेरा गला बैठा है
कभी दिवार , कभी छत , कभी मका बनी रही
खुद में कैद होकर सबके लिए जहां बनी रही
हजारों दर्द सहती रही चुप रहकर
एक मां बच्चों के लिए बस मां बनी रही
वो कहते हैं के बजन नहीं है तुम्हारे शेर कहने में
यार मजा तो है बजन के बगैर कहने में
हमारे दरमियां तालुकात अपनों से भी गहरे हैं
मगर वो लगते हैं मेरे गैर कहने में
कुछ तुम्हारी सुनेंगे कुछ अपनी सुनाएंगे
चांद पर जाने का सपना देखेग दिखाएंगे
हमारी कामयाबी ये है कि हमने नया रास्ता बनाया है
जिस पर चलकर लोग अपनी मंजिल तक जाएंगे आएंगे
हर सहर आफताब का निकलना तय है
हर साख ए गुल का लचकना तय है
मुझे तुझसे क्या जुदा करेगी ये दुनिया
हर दरिया का समंदर में मिलना तय है
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इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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