नमस्कार, आज मै आपके सामने मेरी सात गजलों की सीरीज लेकर आया हूं जिन्हें मैने पिछले महीने में लिखा है उन्हीं गजलों में से पांचवी गजल यू है के
हर सहर आफताब का निकलना तह है
हर साखेगुल का लचकना तय है
मुझे तुझसे क्या जुदा करेगी ये दुनिया
हर दरिया का समंदर में मिलना तय है
उन दो आंखों के कसीदे क्या कहने भाई क्या कहने
जो भी देखेगा उसका बहकना तय है
नामुमकिन है मोहब्बत को जमाने से छुपा लेना
खुशबू है तो महकना तय हैं
ये तो दुनिया कि रवायत है खुदा ने ही बनाया है
यहां सब का मिलना और बिछड़ना तय है
कैद रखो या आजाद रखो मर्जी सिर्फ तुम्हारी है
तनहा मन के परिंदे का चहकना तय है
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इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |.
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