नमस्कार, दिल के कुछ एहसान यू गजल में ढाल लेना आसान नही है मगर कोशिश कर रहा हूँ आपका साथ मिले तो मुझे आपका समर्थन मिले
उसका यही बचकाना रवैया तो हैरान कर रहा है
जिसे जंग से बचना चाहिए वही ऐलान कर रहा है
खुद उसके घर में पीने के लिए पानी नही है
हमे समंदर दिखा दिखा के परेशान कर रहा है
पिछले चार बार में वो बहोत अच्छे जान गया है हमे
इस बार जानकर भी अंजान कर रहा है
बेगैरत नाम के उलट रखता है शख्सियत अपनी
सब्ज मिट्टी को रेगिस्तान कर रहा है
हमसे वो जमीन के झगड़े में तबाह हुआ जा रहा है
आज जब चॉद का सफर इंसान कर रहा है
मंगल पर मुकाम बनाकर आबताब है हमारी ऩयी मंजिल
अब उधर देख रही है दुनिया जिधर तनहा इशारा हिन्दुस्तान कर रहा है
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इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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