रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता, क्या सब सही है

     नमस्कार, एक कवि एक शायर की यह जिम्मेदारी ही नही ये उसका कर्तव्य भी होता है की वह अपने समाज में जो भी कुछ गलत होता देख रहा है या महसूस कर रहा है वह बिना किसी डर के या बिना किसी स्वार्थ के दुनिया की आख में आख मिलाकर सच लिख सके और मै यह कविता लिखकर अपने उसी कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं इस कविता के जरिए मेरा किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा मक़सद नही है और मैं अपने इस कविता के सभी पाठकों से भी यह मधुर निवेदन करना चाहूंगा की इस कविता को केवल कविता की तरह ही पढ़े |

क्या सब सही है

लव के नाम पर जेहाद सही है
निकाह से पहले हलाला सही है
तुम्हारे लिए तो तीन तलाक भी सही है
जबरन पहनावा हिजाब सही है
और ख़ातूनों के मुंह पर ताला सही है
तुम्हारी नजरों में बोलो ना
और क्या क्या जनाब सही है
मेरे ये सारे सवाल सही हैं
मगर अब तुम्हें सोचना है
क्या तुम्हारा जबाब सही है

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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