रविवार, 1 सितंबर 2019

ग़ज़ल, यार तुम्हारे बिन

      नमस्कार, कल रात से आज दिन भर के दरमियाना लिखी मेरी एक नयी गजल आपकी ख़िदमत में हाजिर कर रहा हूँ यदि मेरी यह गजल आपको आपके सच्चे दोस्त की याद दिला दे तो मुझे आपकी पुरी मोहब्बत मिलनी चाहिए | गजल देखे के

किससे मांगु सच्ची राय यार तुम्हारे बिन
मन की व्यथा कही न जाय यार तुम्हारे बिन

मकबूलि का आलम है और है तनहाई
फिकी लगती है टपरीवाली चाय यार तुम्हारे बिन

क्या क्या न याद आए हम क्या क्या तुम्हें बताए
उसकी भी तो कोई खबर न आए यार तुम्हारे बिन

तेरी वो बेवकूफीयां हि तो साद करती थी दिल मेरा
अब यहां हमे कौन हंसाए यार तुम्हारे बिन

ये पिज्जा बर्गर क्या है ये नुडल्स पास्ता क्या है
बहोत दिन हुए समोसा और कचौरी खाए यार तुम्हारे बिन

जरुरतो का हवाला है और नौकरी एक ताला है
ये शहर वो तनहा पिंजरा जहां से हम उड़ ना पाए यार तुम्हारे बिन

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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