मंगलवार, 3 सितंबर 2019

कविता, मैने तुमको कब देखा था

    नमस्कार, एक नयी कविता जो मैने पिछले कुछ दिनों के मध्य में लिखी है आज आप की दरबार में रख रहा हूँ अगर आपको पसंद आए तो मुझे जरूर बताए

मैने तुमको कब देखा था

मैने तुमको कब देखा था
यू थक कर मुस्कुराते हुए
मैने तुमको कब देखा था
यू कुछ बडबडाकर मुंह बनाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
यू मुझ पर झल्लाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
कुछ मन ही मन गुनगुनाने हुए
मैने तुमको कब देखा था
मेरे पास आते हुए
मैने तुमको कब देखा था
मेरी डायरी छिपाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
चीज़े रखकर भुल जाते हुए
बोलो ना
मैने तुमको कब देखा था
पहली बार जुल्फे लहराते हुए
बोलो ना
यू चुप मत रहो
अब तुम्हारी चुप्पी खल रही है मुझे

     मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Trending Posts