रविवार, 1 सितंबर 2019

कविता, बार बार तुम यार यही कहते हो

       नमस्कार, एक कवि एक शायर की यह जिम्मेदारी ही नही ये उसका कर्तव्य भी होता है की वह अपने समाज में जो भी कुछ गलत होता देख रहा है या महसूस कर रहा है वह बिना किसी डर के या बिना किसी स्वार्थ के दुनिया की आख में आख मिलाकर सच लिख सके और मै यह कविता लिखकर अपने उसी कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं इस कविता के जरिए मेरा किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा मक़सद नही है और मैं अपने इस कविता के सभी पाठकों से भी यह मधुर निवेदन करना चाहूंगा की इस कविता को केवल कविता की तरह ही पढ़े |

बार बार तुम यार यही कहते हो

हर बार तुम यही कहते हो
बार बार तुम यार यही कहते हो
गांधी हमारे, नेहरू हमारे
इंदिरा हमारी, राजीव हमारे
क्या ये सब केवल तुम्हारे
क्या ये भारत के कुछ नही
और जब ये सब केवल तुम्हारे
तब तो तुम्हें मानने ही पड़ेगें
ये सारे तथ्य हमारे
धारा 370 और 35ए की गलती तुम्हारी
उससे खड़े हुए सारे सवाल तुम्हारे
एनआरएचएम, 2जी,3जी,कोयला
हो या 2010 खेल ये सारे घोटाले तुम्हारे
वंशावद का वृक्ष तुम्हारा
भाई भतीजा वाद तुम्हारे
भ्रष्टाचार के भीषण बने हालात तुम्हारे
भारत में गरीबी की चरम सीमा तुम्हारी
देश के विकास का हाल बदहाल तुम्हारे
और भी कई बातें है पर
इतने पर ही बोलो क्या हैं ख्याल तुम्हारे

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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