नमस्कार , पिछले दो तीन हप्तों के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख रख रहा हुं
कोई तुझे अपना बच्चा कहता है
कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है
जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग
अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है
सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने
हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने
तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया
जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने
इन आंखों में अश्क यूही नही आता
जिसका इंतजार है वोही नही आता
चांद की जगह सुरज नही ले सकता
यहां किसी कि तरह कोई नही आता
अब हो गया मेरे लिए सपना वो
मानता ही नही था मेरा कहना वो
तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे
मगर था तो मेरा अपना वो
शहीदों वाला इनका आगाज होना चाहिए
अंदाज इनका भगत आजाद होना चाहिए
भले गांधी रहें मन से सरदार रहें तन से
पर हर बच्चे के दिल में सुभाष होना चाहिए
अपने जमीन की हिफाजत भी नहीं की गई तुमसे
सच की ईमान की सियासत भी नहीं की गई तुमसे
दोस्त कहकर मौन रहकर बौने को राजा बना दिया
इसे निरंकुशता कहें या कायरता बगावत भी नहीं की गई तुमसे
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इन मुक्तकों लिते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
सुन्दर और सार्थक मुक्तक।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर
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