नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं
धुतकारते क्यो हैं आने जाने वाले
क्या चाहते हैं ये जमाने वाले
वो दिल दुखाएं और हम रोए भी नही
क्या चाहते हैं ये चाहने वाले
बिगडी़ दोस्ती और खराब कर लेते हैं
आ पुराना हिसाब किताब कर लेते हैं
मेरे जयाति ताल्लुकात नही हैं उनसे
हां कहीं मिले तो अदबो आदाब कर लेले हैं
डर की सल्तनत को सरकार नही मानेगा
किसी गैर का अपनी रुह पर अधिकार नही मानेगा
हमारे हौसले के जद में आती है पुरी दुनियां
हिन्दूस्तान कोरोना से हार नही मानेगा
उसकी खुशीयां अंजाने के साथ भग गई
घर कि इज्जत जमाने के साथ भग गई
खबर छपी थी कल के अखबार में
फलाने कि बीबी फलाने के साथ भग गई
वाक्ये गिनने पे आया तो पैंतिश छत्तीश निकले
जिन्हे खुदा समझता था मै वो इबलीश निकले
कितनी गलतफहमीयां होती हैं हसीनाओं को लेकर
उनके एक दो आशिक नही पुरे इक्कीश निकले
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इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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