नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से चौथी ग़ज़ल यू देखें के
ये बेफिजुल का सुनना सुनाना नही होगा
तय हुआ है अब रोज का मिलना मिलाना नही होगा
दूर रहने से क्या जान पहचान बदल जाएगी
होगा तो ये होगा के आना जाना नही होगा
दरिया खुद ही समंदर तलाश लेतीं हैं
मोहब्बत में अब किसी से पुछना पुछाना नही होगा
आ एक दिन तसल्ली से बैढकर गुफ्तगुं कर लेते हैं
मुझसे ये रोज का वाट्सअप पर मैसेज पढ़ना पढ़ाना नही होगा
जिस बला कि खुबसुरत लगना हो एक बार में ही लग जा
तेरी खुबसुरती में तनहा यू बार बार ग़ज़लें लिखना लिखाना नही होगा
मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |
इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
सुन्दर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंखुब आभार सर आपका
जवाब देंहटाएं