सोमवार, 31 अगस्त 2020

ग़ज़ल , कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पहली ग़ज़ल यू देखें के

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है

कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है


गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए

तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है


मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है

आफताब है के बस ठलता जा रहा है


रुह कि नजदीकियां बढ़ रहीं हैं दोस्ती का दायरा घट रहा है

जो एक रिश्ता है बदलता जा रहा है


हर तरह के गुनाह का जुर्म उन्हीं के नाम है

अजीब शक्स है सब कुछ सहता जा रहा है


तो जंग ऐसे जीता हूं आज मैं

मैं खामोश हुं और वो कहता जा रहा है


तनहा इस जमीन ने बादशाहों कों फना होते देखा है

वो देखो एक बुलबुला डूबने कि कोशिश में उवरता जा रहा है

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

5 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना सामिल करने के लिए आपका बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. मात्राओं का ख्याल रखें। सुन्दर सृजन।।
    अजिब जिता हुं डुबने कि ( अजीब, जीता हूं डूबने की आदि)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभार आपका आपके इस किमती सुझाव के लिए और मेरी गलतीयां बताने के लिए

      बस इसी तरह से मुझे पढ़ते रहिएगा तथा मुझे बताते रहिएगा

      धन्यवाद

      हटाएं

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