मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

ग़ज़ल, पत्थर का क्या है कही भी हो सकता है

   नमस्कार, आज ही लिखी मेरी इस गजल के कुछ शेर यू देखे कि

यकीन कही भी बेअसर हो सकता है
भूत होने का डर कही भी हो सकता है

दिल यहां सही सलामत हैं
उसका धड कही भी हो सकता है

मिलने को फुल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
पत्थर का क्या है कही भी हो सकता है

हर जगह मोहब्बत करना नामुमकिन है
झगड़ा तो कही भी हो सकता है

कमी तो तनहा चलने वालों में होगी वरना
रास्ता तो कही भी हो सकता है

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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