मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

शेरो शायरी, कुछ रुह की सुना दूं 5

    नमस्कार, तीन चार महीनो के अंतराल में जो कुछ थोडे बहोत शेर कह पाया हूं वो आपके दयार में रख रहा हूं समात करें

आज तेरे बहोत करीब आया हूं मैं
खुद से बहोत दुर जाना है मुझे

फकत कौन चाहता है घर छोड़कर सफर करना
पेट की आग परिंदों को दरबदर भटकाती है

हर शहर में एक नया घर बनाना पड़ता है
मुसाफिर होने में यही खसारा है

सितमगरो देखो ना में हंस रहा हूं
मुझे रोता हुआ देखना चाहते थे ना तुम लोग

उस लहजे में नही इस लहजे में गुफ्तगू करुं तुमसे
यही तरिका चाहते थे ना तुम लोग

तेरी खिड़की की तरफ से ये उजाला कैसा
आज की रात रात है या कुछ और है

तुम कह रही हो तुम्हें फूलों से पत्तों से मोहब्बत है
यही बात है के बात कुछ और है

पढने लायक किताब हो जाओ तो बताना मुझे
कोई नया ख़िताब हो जाओ तो बताना मुझे

क्या कहा तुम मेरी मोहब्बत हो ठीक है
जब मुझसे बेहिसाब हो जाओ तो बताना मुझे

अभी तो तुम किसी आंगन का चिराग हो
जब कभी आबताब हो जाओ तो बताना मुझे

अब अथाह गहराई तक उतरना पड़ेगा तुम्हें
ओंठ से दिल तक का रास्ता बहोत लम्बा है बहोत दुर तक चलना पड़ेगा तुम्हें

इस कमरे के हर कोने को रोशनी की जरुरत है
जुगनूओं अब चिराग बनकर जलना पड़ेगा तुम्हें

वो जो कभी मेरे जिस्म को लिबास की तरह पहनेगा
बस उसके लिए खुद को साफ सुथरा बनाए रखा है

आज महफिल ए सुखन के निजाम जो बने बैठे हो तुम
तो याद रहे के हर सुखनवर के शेर पर वाह वाह कहना पड़ेगा तुम्हें

अभी तो ये इंसानो के रहने के लायक ही नहीं है
अभी तो इस शहर में थोडा सा जंगल मिलाया जाएगा

यकीनन मुल्क को खिलौनो का घर बना दोगे
गर एक बच्चे को घर का मालिक बना दोगे

तरक्की का ख्वाब पुराना पैतरा हैं उनका
ख़ानदानी मक्कारों के बहकावे में आना मत

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