सोमवार, 1 अप्रैल 2019

ग़ज़ल, कही ज़िन्दगी इतनी सी अकेली न हो जाए

  नमस्कार , एक नयी गजल आपकी समातों के हवाले कर रहा हूं समात फरमाइए

तन्हाई और खुशी कहीं सहेली न हो जाए
सारे एहसास ही कहीं पहेली न हो जाएं

एक बूंद आंसू तक ना बचे आंख में
कहीं जिंदगी इतनी भी अकेली न हो जाए

बस हवाओं की एक दीवार है आसमान से पहले
जिंदगी और मौत में कहीं आंख मिचोली न हो जाए

हर बार मरता नहीं आदमी कभी-कभी बस जान चली जाती है
आपकी बोली ही कहीं गोली न हो जाए

आजकल जमीन भुलाने का दौर चल रहा है
कहीं दिवाली से पहले होली न हो जाए

ये मोहब्बत ओहब्बत से बचा के रखना
तनहा दिल का खंडहर कहीं हवेली ना हो जाए

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      इस गजल लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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