नमस्कार , एक नयी गजल आपकी समातों के हवाले कर रहा हूं समात फरमाइए
तन्हाई और खुशी कहीं सहेली न हो जाए
सारे एहसास ही कहीं पहेली न हो जाएं
एक बूंद आंसू तक ना बचे आंख में
कहीं जिंदगी इतनी भी अकेली न हो जाए
बस हवाओं की एक दीवार है आसमान से पहले
जिंदगी और मौत में कहीं आंख मिचोली न हो जाए
हर बार मरता नहीं आदमी कभी-कभी बस जान चली जाती है
आपकी बोली ही कहीं गोली न हो जाए
आजकल जमीन भुलाने का दौर चल रहा है
कहीं दिवाली से पहले होली न हो जाए
ये मोहब्बत ओहब्बत से बचा के रखना
तनहा दिल का खंडहर कहीं हवेली ना हो जाए
मेरी यह गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |
इस गजल लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें