शनिवार, 13 अप्रैल 2019

कविता, एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

    नमस्कार, इस कविता की भूमिका में मै कुछ भी नही कहना चाहता आप पढीए एवं स्वयं फैसला कीजिए कैसी रही हां बस इतना कहना चाहूंगा के ये मेरी अभी तक की कुछ बेहतरीन रचनाओं में से एक है

एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

शैतानों हैवानों का राज है इस कलयुग में
एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

तपती दुपहरी में पीपल का छाव था
रहती थी मुनिया जहां एक ऐसा भी गांव था
 
किसी कोमल फूल के पंखुड़ियों सी सरस
करती थी काम मगर उम्र थी बारह बरस

जीतोड़ मेहनत से दो वक्त का गुजारा मुमकिन था
रहते थे खुशहाल भले परिवार दीन था 

परिवार में एक बुढ़िया रमुआ और उसकी पत्नी थी
मुनिया अकेली नहीं चार बहने थी

एक दिन की बात है आरही थी काम से
समझना दिमाग से सुनना मगर ध्यान से

बेधड़क चलते थे भेड़िए सीना तान के
आखिर क्यों नही चिराग थे ठाकुर खानदान के

नहर के मोड पर संकरी थी गली
मासूम कुमारी हवस की आग में जली

फाड़ डाला उसके बदन के चीर को
चार चार कुत्तों ने मिलकर नोचा उसके शरीर को

खून के दाग धोकर चले गए
अधमरा कर नहर में फेंककर चले गए

इस कायर जमाने में अपनी जिंदगी जीने से डर गयी
नहर के पानी में मुनिया डुबकर मर गयी

घर न आई मुनिया दिन से रात , रात से सहर हुई
तब कही जाकर खोजबीन शुरु हुई

एरिया के पुलिस को किसी से जानकारी मिली
नहर में एक बच्ची कि लाश है मिली

रोते मां बाप को खिचकर दुर हटाया गया
सबके सामने लाश का शिनाख़्त कराया गया

कैसे है करतूत का सबूत मिटाय जल्लादों
अपने अपने बापों को डर के मारे सब बताया ठाकुरों के औलादों ने

बेटों को फाँसी पर चढ़ता सोचकर
ठाकुरों ने तरकीब निकाला ताल ठोंककर

डॉक्टर की कलम से सच पहली बार निकला
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में सामूहिक बलात्कार निकला

सब को अपनी अपनी किमत ठाकुरों से मिल गयी
चंद मिनटों के अंदर अंदर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बदल गयी

पुलिस ने भी गुनहगारों को सजा होने से बचा लिया
ठाकुरों की फेंकी बोटीयां खाया और पचा लिया

जिसने भी यह खबर सुनी उसकी रुह तक डर गयी
पुलिस ने रिपोर्ट निकाला गरीबी से तंग आकर मुनिया नगर में कूदकर मर गयी

हर सरकार यही कहती है हमे गरीबी मिटानी है
मगर गरीबों की अब भी वही कहनी है

अमिर अब भी फाइबस्टार होटल में लाखों का खाना खाते हैं
गरीबी में अब भी बच्चे कुपोषण से भूख से मर जाते हैं

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