शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

ग़ज़ल, हुस्न की रंगत में निखार लाने को

     नमस्कार , एक नयी गजल के साथ मैं फिर हाजिर हूं आपके आंगन में मेरी बाकी सभी गजलों की तरह इसे भी पढीए एवं अपने प्यार से नवाजिए

हुस्न की रंगत में निखार लाने ने को
तरस रहे हैं दिवाने करार पाने को

सुना है के आज वो महफिल में आएगा
सजा दिया है चिराग़ों से शराबखाने को

मेरा दिल भी उल्टी गंगा बहता है
तब तब याद आई है वो जब जब चाहा भुलजाने को

आंख हो खामोश लेकिन लवों पर हंसी हो
रोना कहते हैं ऐसे मुस्कुराने को

ये वो गली है जहाँ रोज तूफान आता है
वो जिद पर अडा है यही घर बनाने को

हयात तो तनहा तमाम हो ही जाएगी
मर जाना कहते हैं मगर डर जाने को

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      इस गजल लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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