शनिवार, 8 जनवरी 2022

कविता , अनादि का कब जन्मदिवस है

      नमस्कार , आंग्ल नव वर्ष 2022 में हम प्रवेश कर चुके हैं इस नव वर्ष में यह मेरी प्रथम कविता है जिसे मैं आपको भेंट कर रहा हूं | मुझे भरोसा है कि मेरी यह कविता आपके मन को भाएगी |


अनादि का कब जन्मदिवस है 


वो प्रथम क्षण जब झंकार हुई 

स्वर फुटे लय बने राग हुए 

कौन सा वो प्रथम क्षण था 

ताल लगे आलाप लिए 

अब तक ये प्रश्न विकट है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


माता कौन , पिता कौन 

बन्धु कौन , संबंधी कौन 

मित्र कौन , शत्रु कौन 

शिष्य कौन , गुरु कौन 

बंधन मुक्त भाव प्रकट है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


सूक्ष्म , विशाल जग के निमित्त 

गुण , दोषों के निमित्त 

सृजन , विनाश के निमित्त 

काल , अकाल के निमित्त 

वही निरस वही सरस है 

अनादि का कब जन्मदिवस है 


    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

ग़ज़ल , अपना कहने का अधिकार हार गई

      नमस्कार , आज सुबह मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा | एक जरा सा सलाह है आपके लिए यदि आप वर्तमान खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल को पढ़ने का पुरा आनंद आएगा |


अपना कहने का अधिकार हार गई 

आज से वो मेरा ऐतबार हार गई 


जिनके सीने की नाप है 56 इंच 

हैरत है कि उनकी सरकार हार गई 


सब ने कहा ये जीता है वो जीता है 

मेरी नजर में खेतों की बहार हार गई 


जश्न की रौनक उस चूल्हें पर कहां है 

जिस पर आग भी हुई लाचार हार गई 


अब कौन इतनी हिम्मत दिखाएगा यहां 

मुल्क की आत्मा है बीमार हार गई 


यही तो सियासत है तनहा तुम क्या जानो 

ऐसा तो नहीं है कि पहली बार हार गई 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

ग़ज़ल , एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

उस दिन में जिंदगी को धोखा दूंगा

मेरी मौत पे शायद होंगे सब परिवार के लोग इक्ट्ठा
मैं मरकर ही सही सबको मिलने का एक मौका दूंगा

गर कोई करे जुरअत तुम्हें जबरदस्ती छूने की
तुम मां काली भी हो, मैं मेरी बेटी को ये समझा दूंगा

वो करती है गुमान मुझे छोड़ जाने का 
उसे मैं आसमां से एक परी बुलाकर दिखा दूंगा

अगर रखेगा खयाल वो तुम्हारा ए दोस्त
खुदा क़सम मैं मेरे रकीब को भी दुआ दूंगा

✍🏻Rahul Jerry

October 11 , 2021

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़ज़ल , कलतलक हम भी उनकी तारीफ़ मुंहजबानी करते थे

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


कलतलक हम भी उनकी तारीफ़ मुंहजबानी करते थे 

जब तक वो दिल में मोहब्बत की बागवानी करते थे 


आज हम जहां के गुलाम शहरी कहे जाने लगे हैं 

एक दौर में हमारे पुरखे यहीं हुक्मरानी करते थे 


हयात की हकीकत को छुपाना क्या बताना क्या 

ज़िन्दगी के शुरुआती मरहले में हम चाय पानी करते थे 


अब के बच्चों में बड़े होनी कि इतनी जल्दी है की रब्बा 

तनह हम इनकी उम्र में थे तो नादानी करते थे 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , दरिया के साथ कहीं समंदर नही जाता

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


दरिया के साथ कहीं  समंदर  नही  जाता 

आंखों के साथ चलकर मंजर नही  जाता 


हर इंसान में होता है मगर कम या ज्यादा 

तमाम कोशिशों के बाद भी बंदर नही जाता 


ख्वाबों ने बना दिया है दिवालिया मुझको 

हर इंसान में रहता है सिकन्दर नही जाता 


तमाम लोग बोलते हैं झूठ किस मक्कारी से 

इसका सच मेरे हलक के अंदर नही जाता 


आखिरत का खौफ़ नही है तनहा मुझको 

रुह जाती है आसमान तक पंजर नही जाता 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्क्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा 

और पूछ रहे ह़़ो किसको नही देखा 


चमेली को गुलाब समझ बैठे हो तुम 

यकीनन ही तुमने उसको नही देखा 


हकिकत ये के सिक्के के दो पहलू हैं

इल्जाम से पहले इसको नही देखा 


कशीदा पढ़ रहे हो हूरों की शान में 

मतलब ज़मीन पर उसको नही देखा 


कुछ कहने से है चुप ही रहना बेहतर 

तनहा जबतक तुमने खुदको नही देखा 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


मुस्कान पर दिल दिया आह  में मर गए 

कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए 


खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं 

तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए 


तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना 

हम  एक  मोहब्बत के गुनाह  में मर  गए 


पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक 

आज से   तुम  मेरी   निगाह में   मर  गए 


इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या 

कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए 


कातिल से तो तुम बच निकले तनहा 

हम तो  अपनों  की पनाह में मर गए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल , मै ये बात कभी नहीं बताता उसको

     नमस्कार , आज कि रात मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज सुबह आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 


मैं ये बात कभी नहीं बताता उनको 

मुहब्बत में लड़ने का हुनर नही आता उनको 


कहां कहां भटका हूं पानी की तलाश में 

वो मेरी प्यास समझते तो बताता उनको 


कितने जख्म दिए हैं उनकी बेरुखी ने 

दिल कोई चीज होती तो दिखाता उनको 


या खुदा उन्हें कोई तो गम दे रोने को 

मेरी चाहत वो मेरे कंधे पे रोते तो हंसाता उनको 


वो आज आसमान में बादल है नही तो 

चांद को उँगलीयों से छुके दिखाता उनको 


मलाल ये के असल में वो तो वो कोई हैं ही नहीं 

जब भी हम तनहा होते सताता उनको 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 9 सितंबर 2021

कविता , रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय 


विश्वास ही नहीं होता मुझको 

आप को भी नही होता ना 

किसी को भी नहीं होता होगा 

आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है 


कि कोई सूरज नाम का चीज है 

जो रोज सुबह जन्म ले लेता है 

और कुछ घंटे जीवित रहता है 

फिर मृत्यु को हो जाता है 


और फिर अगली सुबह जीवन पाता है 

यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है 

और ना ही नश्वर 

इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है 

किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक महल और मैं

      नमस्कार , लगभग हफ्ता भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक महल और मैं 


एक महल की छायाचित्र देखकर 

स्वयं को उस महल में कल्पना करने लगा 

वो सोने के आभूषण वो नौकर चाकर 

वो महंगें वस्त्र वो आलीशान विस्तर 

बहुत सी लंबी लंबी गाड़ीयां 

वो हवाई जहाजों पर सवारीयां 

कितने होंगे स्वादिष्ट पकवान 

तभी एकाएक वापस लौट आया ध्यान 

आज घर में सब्जी क्या बनी है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक कच्ची मिट्टी का घडा

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक कच्ची मिट्टी का घडा 


एक कच्ची मिट्टी का घडा 

मुझसे ये कहते हुए रो पड़ा 


कि मैं टूट जाउंगा 

मुझे विश्वास मैं टुट जाउंगा 

उस पक्की मिट्टी के घडे से 

बराबर करते हुए 

उससे खुद को बेहतर 

साबित करने का युद्ध लडते हुए 


उसकी आंखों से 

अश्रु धारा बहने लगी 

और वह अधीर होते हुए 

सीसक कर बोला 

मैं कहां ये युद्ध लड़ना चाहता हूं 

वास्तव में यह युद्ध ही नही है 

यह तो मेरा अपना अस्तित्व 

बचाने का प्रयास है 

मुझे विश्वास है कि मैं नही टुटुंगा 


क्योंकि अगर मैं टुट गया 

तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व 

कच्ची मिट्टी के घडों का 

लोग यह कहकर नही खरीदेंगे की 

कच्चे घडे तो कमजोर होते हैं 

ये बहुत जल्दी टुट जाते हैं 

और फिर कुम्हार हमें 

बनाएगा ही नहीं यह कहकर 

ये कच्चे घडे तो बिकते ही नहीं 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , पंजाब की तो बात ही निराली है

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


पांच नदिया बहती है जिसमें 

वो पावन भूमि जैसे एक थाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


अमृतसर का अमृत सर है 

गुरुग्रंथ का यह पावन घर है 

गुरुवाणी का प्रभाव सब पर है 

भाषा तो मानो शहद की प्याली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


भांगडा़ , गिद्दा सब की शान हैं 

दसों गुरुओं पर जन-जन को अभिमान है 

किसानों की आन खेत खलिहान हैं 

लोहड़ी , होली , दशहरा और दिवाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , हिमाचल और हिमालय

       नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

हिमाचल और हिमालय 


हिमाचल और हिमालय 

जैसे शिव और शिवालय 


शिमला , मनाली कि पहाड़िया 

किनौर कि शॉलें कुल्लू की टोपीया 


डलहौजी का मोहक पर्यटन है 

खेल स्कीइंग और पर्वतारोहन है 


प्रकृति के वो अनमोल नजारे 

सौन्दर्य से भरपूर नदियों के किनारे 


संस्कृति का विसाल संग्रहालय 

हिमाचल और हिमालय 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , लद्दाख संस्कृति है कितनी महान

       नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 


लद्दाख को मिल गई अपनी पहचान 

पर्वतों पर पला है बौद्ध ज्ञान

एक से बढ़कर एक विद्वान 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 


गोम्पा उत्सव विश्वंभर में प्रसिद्ध है 

कितना आकर्षक मुखौटा नृत्य है 

यहां काली मां भी पाती सम्मान 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , जिसे कहते हैं हम जम्मू कश्मीर

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

जिसे कहते हैं हम जम्मू.कश्मीर


मां वैष्णो देवी का ये उपकार है 

बाबा अमरनाथ का भी दरबार है 

जिसे कहते हैं हम जम्मू.कश्मीर में 

स्वर्ग की अनुभूति का आनंद ही अपार है 

नवरेह का नवचंद्र का नव वर्ष है 

ईद , दशहरा , शिवरात्रि का भी पर्व है 

कश्मीरी कश्मीरीयत का यही अर्थ है 

तभी तो कहते हैं जम्मू.कश्मीर स्वर्ग है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

ग़ज़ल , उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

      नमस्कार , लगभग एक से दो हफ्ता पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 

उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

फिर दिल के भीतर की मक्कारी देखो 


गर नमूना देखना हो तुम्हें ईमानदारी का 

तो जा के कोई दफ्तर सरकारी देखो 


आज इंसानों ने बहुत तरक्की कर ली है 

मगर जानवरों की वफादारी देखो 


दवा बनाने से पहले कब्रिस्तान बनाए गए 

महामारी में सरकारों की तैयारी देखो 


एक बार में पुरा हासिल नही होगा तनहा 

मुझे देखना हो यार तो बारी-बारी देखो 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 29 मई 2021

ग़ज़ल , नही का मतलब नही , नही होता

      नमस्कार , एक दिवस पूर्व मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूं |

नही का मतलब नही , नही होता 

इस मोहब्बत मे नही , नही होता 


आंखें भी बहुत बोलती हैं उसकी 

ओठ जो कहें दें वही , नही होता 


मोहब्बत में मिला जख्म नही दिखता 

दर्द दिल के सिवा कहीं , नही होता 


सजा पाता हूं उसके किए जुर्म का 

हर बार वही तो सही , नही होता 


रहती हैं उसकी यादें सदा बनकर 

तभी तो मैं तनहा कभी , नही होता 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 26 मई 2021

कविता , अपनों को खोकर

      नमस्कार 🙏विधा कविता में विषय अपनों का गम पर दिनांक 4/4/2021 को मैने एक रचना की थी जिसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 

अपनों को खोकर 


आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

न अब सावन 

लगेगा मन भावन 

और फागुन 

फिका फिका लगेगा 

पकवान अब कोई 

न मीठा लगेगा 

आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की

     नमस्कार , 26 मई 2021 को मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये ग़ज़ल अच्छी लगेगी 

मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की 

तुम तो सुनते हो बस इस जमाने की 


तुम्हारे महल की ठंडक तुम्हें मुबारक हो 

मेरी तमन्ना है बस मेरा घर बनाने की 


मैं वो नही के इमान को गिरवी रखदूं 

अना तो चीज ही होती है नजर आने की 


इसबार की बहार आए तो यही शर्त रखुंगा 

मुझसे वादा करो लौटकर न जाने की 


यही हुआ है के एक अरसे से मै तनहा हूं 

ये सजा मिली है मुहब्बत न समझ पाने की 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


रविवार, 16 मई 2021

कविता , एक गिलहरी देखा मैने

      नमस्कार 🙏 करीब दो हफ्ते पहले मैने एक प्रतियोगिता के लिए यह कविता लिखी थी जिसमें मेरी यह कविता सम्मानित की गई है | अब इसे मै आपके हवाले कर रहा हूं कविता कैसी रही जरूर बताइएगा 

एक गिलहरी देखा मैने 


रेत के टीले में लोट लगाकर 

सागर जल में खुद को धोती थी 

ऐसा वो क्यों बार-बार करती थी 

देख इसे मन ही मन सोचा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 


तब निश्चय किया कि इसे 

क्या पीड़ा है , पूछ तो लू 

इसकी हृदय वेदना सून तो लू 

कर निश्चय फिर पूछा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 


गिलहरी ने कहा प्रभु श्री राम से 

आप लंका चले है धर्मरक्षा के काम से 

मौन रहकर यू ही मै शांत नही बैठुंगी 

सहयोग करुंगी,सागर में रेत भरने सोचा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 

   मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

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