नमस्कार , आज के बदलते हुए दौर के बदलाव और रहन सहन को देखकर एक बुज़ुर्ग इंसान क्या सोचता होगा जो इस नए माहौल में खुद को असहज महसूस करता है वही मेरी इस नयी कविता का विषय है | अब और ज्यादा भूमिका न बनाते हुए सीधे सीधे कविता आपके हवाले करता हूँ |
ये वही पुराना वाला आदमी है
ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता
पुराने विचारों को भुला नहीं सकता
जो इसे मिले हैं पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहे
अपने बुजुर्गों से
उन संस्कारों से पीछा छुड़ा नहीं सकता
बच्चे कहते हैं बड़ा जिद्दी आदमी है
जो कुछ समझता ही नहीं
ये वही पुराना वाला आदमी है
जो कभी बिना नहाए खाता नहीं
इसका दिन ही शुरू नहीं होता
जब तक प्रभु श्री राम के भजन गाता नहीं
जो अब चिढ़ता है मां को मोम कहते सुनकर
जो नएपन को धिक्कारता है
पिताजी को डैड कहते सुनकर
जिसे अब घर की बहओू का
बेहया होना अच्छा नहीं लगता
लोग कहते हैं बड़ा पागल आदमी है
ये वही पुराना वाला आदमी है
जो नएपन को अपना नहीं सकता
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इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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