सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

चार नए मुक्तक

  नमस्कार , हाल के महीनों में मेरे लिखे कुछ तिन चार मुक्तकों को समात फर्मालें हो सकता है ये किसी काम लायक हो -

                     (1)

हर खुशी हर सम्मान से ज्यादा है
मान और अपमान से ज्यादा है
भूलकर भी सड़कों पर कभी यूं न फेंकना इसे
इस झंडे की कीमत मेरी जान से ज्यादा है

                       (2)

हां ये सच है मैं टूटा जरूर हूं
मगर मुझे कांच सा बिखरना नहीं आता #
वो और लोग होंगे जो अपने रुख से पलट जाते हैं
सच बात कह कर मुझे मुंकरना नहीं आता

                       (3)

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी  कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है
खूबसूरती इतनी है कि उफ
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी कयामत ढाता  है

                        (4)

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है
गुरबत और अमीरी की नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन पर दिन सूखते जा रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है

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      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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