शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

कुछ रुह की सुना दूँ 1, शेरो शायरी

  नमस्कार , कुछ और शेर कुछ मिसरे यू देखें के

यहां खचाखच भीड़ है कुछ मांगने वालों  की
आप कुछ देने वाले हैं तो उधर से निकल जाइए

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी  कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है

खूबसूरती इतनी है कि उफ
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी कयामत ढाता  है

सावन में उष्ण हे फागुन में नमी हो रही है
मसला ये था ही नहीं , कही की बात है और कहीं हो रही है

कब्रों में रहने वालों की किमत नही समझती
दुनियां कब्रों को बड़ा समझती हैं

भले आसमानों पर आज के उस्तादों का कब्जा है
मगर पुराने दरख़्त नए परिंदों को आसरा देते हैं

गमों ने रिस रिस कर दिल में दर्द का समंदर बना दिया है
यू ही तनहा नही हो गया हूं मैं

हवा पानी जमी आसमा की बिसात न बदल दे वो
वो बदलने पर आया है खुदा कहीं तेरी जात न बदल दे वो

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

गुरबत और अमीरी की नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन पर दिन सूखते जा रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है

नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो
अगर किसी से उम्र भर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है

खुद अपने हाथ से अपनी दुनिया बेरंग मत करो यारों
आंख पर पट्टी लगाकर लुका छुपी खेलने वालों

तेरी एक छोटी सी झुकती हुई नजर वाली मुस्कान ने मार डाला मुझको
वरना मरना इतना भी आसान नहीं है

यूं भी नसीब का मजाक मत उड़ाया करो यारों
चलने से तुम्हारे पांव दर्द करते हैं अरे जो हाथ से चलते हैं उनकी तो सोचो

मुझे बड़ों से बुजुर्गों से पेश आने का सलीका आता है
मियां मुझे भी थोड़ी बहोत उर्दू आती है

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