नमस्कार , कुछ और शेर कुछ मिसरे यू देखें के
ये नए जमाने का दौर है झूठ को सच मानते हैं
अंधेरे चरागों से चराग होने का सबूत मांगते हैं
इस मोहल्ले में रहने का अब वो मजा नहीं आता
मेरी खिड़की से मुझे मेरा चांद नजर नहीं आता
.
वो रौब से गुजारिश करते हैं कभी कभी
अरजीया इस तरह तो नहीं लगाई जाती
आज मैं फिर मेरे ईमान को नहीं जला पाया
खाली हाथ हूं इसलिए कि खुद की क़ीमत नहीं लगा पाया
अब कहां इस जहां में सच्चा इंसान मिलता है
यह वो बाजार है जहां कौड़ियों के भाव ईमान बिकता है
मजहब के आंड में हकीकत को झूठलाने लगे हैं लोग
खुद के चिराग बुझाकर जुगनुओं पर उंगली उठाने लगे हैं लोग
वह देखिए तूफान पड़ा है बिखरा हुआ
सोच कर आया था कि मुझे रेजा - रेजा तोड़ देगा
मैं इस तरह से यू नजर नहीं आता
कुछ खो जाने का डर होता तो ठगों के इलाके में नहीं आता
मैं एक दरिया ही अच्छा हूं वह सागर बनकर क्या फायदा
जो एक तिशनगी तक बुझा नहीं सकता
अपनी मातृभूमि के लाल हैं बब्बर शेर का कलेजा रखते हैं
जो ताले लगा दे हौंसलों पर हम उन कानूनों के दायरे में नहीं आते
मुझे मेरी काबिलियत का आइना मत दिखाओ जालिमो
सागर अपनी गहराई जानता है
मैं एक हीरा हूं जिसे लोग ईमान कहते हैं
मेरी कीमत सिर्फ उतनी नहीं जितनी जोहरी लगाता है
मैं अपनी आपबीती किसे सुनाऊं तितलियों
मैं दिल की कहता हूं तो लोग हंस कर टाल देते हैं
चंद लफ़्ज़ों की बात नहीं है कि कुछ सैकड़ा पन्नों में आ जाए
जिंदगी से किताब होती है किताब से जिंदगी नहीं होती
दिल की कहने से पहले उनका मिजाज भाप लेना जरूर
ठंडी बयार और लू में फर्क होता है #
बिना बेटियों के घर कैसा होगा
बिना चिड़ियों के घोसला देख लेना
सर्द झोंकों को मामूली समझकर चरागों को अटारी पर नहीं रखते
कभी होश , कभी पानी , कभी बस्तियां कभी , छप्पर ये हवाएं नजाने क्या-क्या उड़ा लेती हैं
मुल्क की असलियत और तरक्की देखनी है तो मजहब का चश्मा उतारिए
कोहरे में साफ रोशनी नजर नहीं आती
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