सोमवार, 5 सितंबर 2022

गीत , श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो

      नमस्कार , कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें रचनाकार न सिर्फ रचता है बल्कि उसे जीता भी है या भविष्य में जीना चाहता है आज जो ये गीत मैं ने लिखा है यह उसी तरह की रचना है | यह गीत आपके अवलोकन के लिए उपस्थित है |


     प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो 

     प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो 

     तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो 

     श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो 


प्रेम अंकुर भरा है संसार में 

छंद में रस में , अलंकार में 

इतने तारे सितारे गगन में हैं क्यों 

प्रेम पल्लवित होता है अँधियार में 

प्रेम संगीत का एक स्वर है वही 

राग गर मैं बनूं रागिनी तुम बनो 


     प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो 

     प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो 

     तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो 

     श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो 


प्रेम कंकड़ में शंकर दिखाता है 

प्रेम ही तो सावित्री बन जाता है 

कभी मेघों को दूत बनाता है प्रेम 

प्रेम अंकों में भी मिल जाता है 

प्रेम है एक तपस्या चिदानंद है 

योग गर मैं बनूं योगिनी तुम बनो 


     प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो 

     प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो 

     तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो 

     श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो 


प्रेम शब्दों में बंधकर निहित नही 

प्रेम रुपों में रंगों में चिन्हित नही 

इससे उंचा हिमालय न सागर है गहरा 

प्रेम जैसा कोई फूल सुगंधित नही 

प्रेम में विरह भी मधु ही लगे 

संग गर मैं बनूं संगिनी तुम बनो 


     प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो 

     प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो 

     तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो 

     श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो 


     मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

गीत , कान्हा कहो ना प्रेम क्या है

      नमस्कार , आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं | श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर मैने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित ये गीत लिखा है |


कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

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क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        नर नही तुम हो नारायण 

        धर्मनिष्ठ हो कर्तव्यपरायण 

        कर्म में हो निहित तुम भी 

        पर प्रेम में मोहित तुम भी 

        सत्य का विश्वास तुम हो 

        ब्रह्मांड में प्रकाश तुम हो 

        झूठ भी तो तुम में है 

        हो तुम्हीं सत्य की चेतना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        मुझसे सब यथार्थ कहो 

        सारांश कहो भावार्थ कहो 

        राधा से वियोग रुक्मिणी से योग 

        इसका सब निहितार्थ कहो 

        समय के तीनों आयामों में तुम हो 

        गति और विरामों में तुम हो 

        मुझसे छंदों में कहो या श्लोकों में 

        या कहो तुम विवेचना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


        मुझसे कहो आनंद क्या है 

        और फिर परमानंद क्या है 

        मोक्ष निहित है ब्रह्म में या 

        या फिर मोक्ष परब्रह्म में है 

        जीव का अस्तित्व क्या है 

        या मरण का महत्व क्या है 

        अमृततुल्य प्रशंसा है या 

        या की है ये आलोचना में 


क्या है वो पीड़ा विरह की 

कान्हा कहो ना प्रेम क्या है 

रहस्य जो है संयोग वियोग में 

भेद छुपा है जो वेदना में 


     मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 14 अगस्त 2022

वन्दे मातरम् पुरा राष्ट्रीय गीत

 24 जनवरी 1950 को वन्दे मातरम् को भारत के राष्ट्रीय गीत के रुप में अपनाया गया | वन्दे मातरम् गीत को 15 अगस्त की मध्य रात्रि को संसद भवन में पुरा गाया गया था परंतु बाद में कुछ लोगों के विरोध के बाद इसके केबल दो खंड के गाने को मान्य किया गया | आज हम में से बहुत से लोगों को पुरा राष्ट्रीय गीत पता ही नहीं है | क्योंकि आज 76वॉ 15 अगस्त है तो मैं ने निश्चय किया की इस अवसर पर पुरा राष्ट्रीय गीत साझा किया जाए |


वन्दे मातरम्

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वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम्

मातरम्।


शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥


कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले

कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,

अबला केन मा एत बले।

बहुबलधारिणीं

नमामि तारिणीं

रिपुदलवारिणीं

मातरम्॥ २॥


तुमि विद्या, तुमि धर्म

तुमि हृदि, तुमि मर्म

त्वम् हि प्राणा: शरीरे

बाहुते तुमि मा शक्ति,

हृदये तुमि मा भक्ति,

तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥


त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी

कमला कमलदलविहारिणी

वाणी विद्यादायिनी,

नमामि त्वाम्

नमामि कमलाम्

अमलां अतुलाम्

सुजलां सुफलाम्

मातरम्॥४॥


वन्दे मातरम्

श्यामलाम् सरलाम्

सुस्मिताम् भूषिताम्

धरणीं भरणीं

मातरम्॥ ५॥


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शनिवार, 13 अगस्त 2022

कविता , अमृतकाल

     नमस्कार , भारत के आजादी का अमृत महोत्सव को केन्द्र में रखकर आज मैने ये कविता लिखी है जिसे मैं आपके जैसे सुधी पाठकों के मध्य पटल पर साझा कर रहा हूं 


अमृतकाल 


ये स्वतंत्रत अमृतकाल 

पुण्य धरा भारत को 

प्रदान कर रहे हैं महाकाल 

उपहार है हर भारतीय को 


अब निश्चय करले हर मन 

राष्ट्र की सेवा में अर्पित तन मन 

नए संकल्प का उत्साह लेकर 

प्रगति पथ पर जुट जाए जन जन


 यह राष्ट्र अजेय अविनाशी है 

जिसके संस्कृति में काशी 

गंगा का अमृत जल जिसका 

निवासी जिसका भारतवासी है 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



सोमवार, 25 जुलाई 2022

ग़ज़ल , खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी पर कुछ संकोच में था इसलिए आपके समक्ष हाजिर नही कर रहा था पर आज हिम्मत करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 


खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे 

बेतुके बेबुनियाद और पाखंडी हो जाओगे 


वो माहौल है सत्ता विरोध का की क्या कहने 

तुम सच बोल दो गे तो संघी हो जाओगे 


मई की गर्मी जैसे भले हों हौसले तुम्हारे 

सरकारी फाइलों के जाल में फंसकर ठंडी हो जाओगे 


आम आदमी तो आम तक नही खरीद सकता 

आजकल मंडी में जाओगे तो मंडी हो जाओगे 


या सब चुप हैं या हूआं हूआं कर रहें हैं 

तनहा तुम भी चुप रहे तो शिखंडी हो जाओगे 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

ग़ज़ल , दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर

      नमस्कार , आज मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं इस यकीन पर की आपको अच्छी लगेगी और आपका प्यार इसे मिलेगा |


दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर 

56 भोग तैयार रखें हैं मंत्री निवास पर 


तय करना है आवाम का गला कितना काटा जाए

पार्टी मीटिंग रखी गयी है अध्यक्ष निवास पर 


अब बस बोतल खुलने की देर है फिर रामराज्य आएगा 

लोकतंत्र लिखा हुआ है हरेक गिलास पर 


ज्यादा से ज्यादा क्या होगा कोई भूख से मर जाएगा

इससे मातम थोड़ी ना मनेगा विधायक आवास पर 


जो बस फाइलों में दिखता है हकिकत में नही 

साहेब तरस आता है मुझे आपके ऐसे विकास पर 


बोलने को और भी बहुत कुछ बोल सकता है तनहा 

चुप हो रहा है मगर आप की लिहाज पर 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



मंगलवार, 19 जुलाई 2022

ग़ज़ल , वो जादूगर है पल में खजाना बना दे

      नमस्कार , 26 जून 2022 को मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैने एक पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर किसी कारण बस अब तक यह प्रकाशित नही हो सकी है इसलिए मैने यह निश्चय किया की पत्रिका में प्रकाशन का मोह छोड़कर मुझे इसे आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए | ग़ज़ल का आनंद लें 


वो जादूगर है पल में खजाना बना दे 

नुमाइश ऐसी कि बस दिवाना बना दे 


वो बस बातें बना रहा है अच्छी-अच्छी 

उससे कहो मेरे धर का खाना बना दे 


अमीरी दिखाने को महल बना लिया 

ये नही की एकनया दवाखाना बना दे 


कमाल ये नही है कमाल की बात है 

बेकारों को कमाल ये जमाना बना दे 


काले बादल दिख रहे हैं आसमान में 

वो फिर बरसात का न बहाना बना दे 


फसल , धर , बाढ़ सब का बनता है 

तनहा दिल टूटने का हर्जाना बना दे 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

ग़ज़ल , थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है

 नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है 

नदियों की पीर से किनारा टूटता है 


जो-जो झूठ न बोल पाए चुप रहे 

सच बोलने से भाईचारा टूटता है 


कतार में खड़े हैं दुआएं मांगने को

खबर है आज की रात तारा टूटता है 


तुम क्यों परेशॉ हो इस खामोशी से 

हादसों से यकीन तो हमारा टूटता है 


कच्च मकान और मुहब्बत में यकी

तनहा बरसात में सारा टूटता है 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



सोमवार, 27 जून 2022

ग़ज़ल , मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है

      नमस्कार , आज मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि ग़ज़ल आपको अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए 


मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है 

और जल्लादों को सिपाही कहना है 


लगाई है ऐसी बंदिश जेहन पर मेरे 

मुझे अपने क़ातिलों को भाई कहना है 


जो है वो कह दूं तो बल्बा हो जाएगा 

मुझे कुडे के ढेर को सफाई कहना है 


पर्वतों से ऊँची है इंसानों की शोहरत 

मुझे चिथड़े कम्बल को रजाई कहना है 


न काफिया है न रदीफ शेर में तनहा 

मगर मुझे तुकबंदी को रुबाई कहना है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 18 मई 2022

ग़ज़ल , इस शोर शराबे से हट निकला है

      नमस्कार , 16 मई 2022 यानी बुद्ध पूर्णिमा के पावन दिन पर आ रही खबरों के हवाले से मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आज आपके समक्ष हाजिर कर रहा हूं यदि ग़ज़ल पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |


इस शोर शराबे से हट निकला है 

इल्ज़ामों के भवर से बच निकला है 


खबर तो सब यही बता रहे हैं 

पुराने तहखानों से सच निकला है 


उस इमारत की बुनियाद ही झूठ थी 

उसके गिरने से सच निकला है 


मैने यही समझा है लावा देखकर 

जमीन के रोने से फट निकला है 


मुहब्बत में गिरवी रखना पड़े दिल 

तनहा ऐसी गुलामी से बच निकला है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , वो और लोग हैं जिन्हें जमाने का संकट है

      नमस्कार , करीब दो से ढाई महीने पहले मैने इस ग़ज़ल को लिखा था और किसी पत्र या पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था | आज मैने ये निश्चय किया कि इसे अपने इस पटल पर साझा करुं |


वो और लोग हैं जिन्हें जमाने का संकट है 

मेरे सामने तो कमाने खाने का संकट है 


देने वाले देते होंगे अपनी जान मुहब्बत में 

मगर मुझे तो जान बचाने का संकट है 


बड़ी-बड़ी बातें बहुत अच्छी हैं मसलन 

दुनियां के सामने फलाने का संकट है 


नशीली आंखों का जादू उन पर नही होता 

जिनके सामने घर चलाने का संकट है 


अब आसमान से कोई फरिश्ता नही आएगा 

इन लोगों को ये सच समझाने का संकट है 


नही भी नहीं कहा उसने हां भी नहीं कहा उसने 

यही तो नए-नए दिवाने का संकट है 


अब मुहब्बत करना बहुत बड़ी बात नहीं है 

सब के सामने निभाने का संकट है 


तीन बार ना कहा है तनहा उसने मुझसे 

अब मुझे ये रिश्ता बचाने का संकट है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए

      नमस्कार , यह ग़ज़ल मैने करीब ढाई महीने पहले एक पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए लिखी थी जिसे मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि आप उस समय चल रही खबरों से इसे जोड़कर पढ़ेगें तो आपको इसका ज्यादा आनंद आएगा |


उसे इस बेतुके सवाल का जवाब चाहिए 

जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए 


इस सुरत में भला तालीम को भी क्या हासिल होगा 

जहां किताब के हर पन्ने पर नकाब चाहिए 


मैं न मानूंगा तुम्हारी तरक्की पसंद दलीलों को 

यहां हर बच्ची जब तक न कहेगी मुझे किताब चाहिए 


एक ही घर है हिन्दुस्तान और हम सब को रहना है 

वही संस्कार और अदबो आदाब चाहिए 


अंजाम से बीना खौफ खाए जिसने सच बोला है 

ऐसे शख्स को मिलना तो ख़िताब चाहिए 


गैर की हयात के फैसले करते हैं जमी वाले 

ऐसे नामुरादों को भी खुदा से सवाब चाहिए 


हिन्दी और उर्दू ही नही कन्नड़ में भी शेर कहेगा तनहा 

हां बस आपकी मुहब्बतें बेहिसाब चाहिए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कविता , वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है

      नमस्कार , कल हमरंग विषय पर यू ही ये कविता लिखी जिसे आपसे साझा कर रहा हूं 


वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है 


वह हरी हरी बिंदी के साथ 

गुलाबी चुनरिया ओढ़े हुए 

लाल चूडियाँ खनकाती हैं 

काली आंखों का बंधन वो 

प्रेम जिसका एक सहारा है 

वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है 


कोई काले मीठे अंगूर जैसा 

कोई लाल-लाल सेब के जैसा 

संतरे के जैसा रसीला कोई 

तो कच्चे आम जैसा खट्टा कोई 

फल के हैं प्रकार ये सभी 

बोलो तुम्हें कौन सा प्यारा है 

वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है 


अलग-अलग है आकारों का रंग 

अलग-अलग है विचारों का रंग 

अलग-अलग है प्रकारों का रंग 

सृजनयोगी सहयोगी हैं हम 

हम सब में है वो एक समरंग 

हां सृजन रंग ही हमारा सहारा है 

वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है 


      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

शेरो शायरी , शेर कह रहा हूं

      नमस्कार , आठ नौ माह में मैने ट्वीटर पर जो कुछ भी ट्वीट किया है उसे यहां प्रकाशित कर रहा हूं |इसमें कुछ शेर हैं कुछ मुक्तक हैं और कुछ यू ही बस तुकबंदी हैं |


हमारी एक नही कईयो भूमीयों पर ढांचे हैं 

हमे इसका इल्म नही है हम कितने अभागे हैं


मैं रोता हूं दर्द देखकर मासूमों का 

अभी मेरी आंखों का पानी मरा नही है 


यहां तो सब के सब अपने हैं 

तनहा दिल की बात करें तो करें किससे 


तुमको चाहते भी बहुत हैं मगर तुम्हें अपनाएंगे भी नही 

तुमसे मोहब्बत भी बहुत है मगर तुम्हारे पास आएंगे भी नहीं 


मेरी खामोशी से तंग आकर ये कहा उसने 

अब तुम मुझसे कभी बात मत करना 


ये किसने दिल तोड़ा है बादलों का 

कुछ दिन से दिन रात रोए जा रहे हैं 


ये तो सच है इसमें शक क्या है 

गैर कि जान पर तुम्हारा हक क्या है 

जिस दिन जाती हो जान करोडो़ मासूमों की 

उस दिन में मुबारक क्या है 


दर्द के इमान की तारीफ़ करों 

ये सब को एक जैसा होता है 


बस इसलिए जिस्म को बर्दाश्त कर रहा हूं 

मेरी रुह का बहुत कर्जा है मुझ पर 


कौन अपनी मर्जी से चाहेगा तनहा होना 

मेरे नसीब ने यही तोहफ़ा दिया है मुझको 


मैं इसी कोशिश मैं दिन रात आमादा हूं 

बस एक बार ये दिल निकल जाएं तो मशीन हो जाउं 


नजाने क्यों तनहा दिल मेरे पास भी है 

जब सब पहले से तय है इसकी जरुरत क्या है 


मेरी हयात पे हावी है मेरी क़ुदरती बनावट 

ये मुझे चैन से कभी जीने नही देगी 


मै एक हारा हुआ आदमी हूं तनहा 

मगर दिखावा मै जीतने का कर्ता हूं 


नौसिखिये तलवार दिखाकर डरा रहे है उनको 

जिन योद्धाओं ने तनहा हजारों युद्ध जीते हैं 


ये न समझना के दुश्मन सरदारों ने हराया है हमको 

जब भी हराया है तो बस गद्दारों ने हराया है हमको 


मेरी बातों से लाजिम है तेरा खफ़ा होना 

मै तुझे खुश करने के लिए बातें नही करता 


मसला ये है के सच कहता हूं मैं 

झूठ बोलता तो लहजा बदल भी लेता 


नयी फसलें उगाने का मौसम है 

तुम नए फासले मत बढ़ाओ 


यहां के धूप की रंगत बताती है 

यहां की छाँव कितनी सस्ती है 


ऐसे चिरागों को चिराग कहलाने का हक नही 

जिसकी लौ से घर के घर जल जाए 


समंदर ने बदला रास्ता अपना 

एक दरिया जिद पर आगया था 


सच ने डाल रखा है पल्लू माथे पर 

जानता हैं दुनिया मक्कारों की है 


ऐसा लगा मुझे जुगनू से मिलकर 

जैसे मैं किसी दिवाने से मिला 


ऐसा कोई मर्ज नही जिसका इलाज न हो 

गलतफहमी तो पाली जाती है 


आ तुझे दिल की तिजोरी में रखु तू मेरी मोहब्बत की पाई-पाई होजा

मै चटकुं तेरी चाहत में तू मेरी मोहब्बत में टूटकर राई-छाई होजा

तनहा घर के दरवाजे वही रहते हैं बस चिलमन बदलती रहती है

मै तेरा नेकी बदी हो जाउं तू मेरी अच्छाई बुराई होजा


रेगिस्तान के खेतों में चूड़ी खनकेगी

हर खलिहान के माथे पर बिंदी चमकेगी

ये बता दो पत्थर की इमारतों को

सब्ज जमीन पर जिंदगी पनपेगी


गैर तो जैसे भी हैं गैर हैं 

मुझे तो मेरे घर ने पराया कर दिया 


जब जब #भारत मां के आंचल को फाड़ा जाएगा 

तब तब हाथ में लेकर भाला कोई #राणा आएगा 


तनहाई खामोशी शराब गम मदहोशी 

ये सारा इंतजाम बस आज की रात का है 


नाम,दौलत,शोहरत सब तमाम मिल गया 

जो अंगूर के लायक नही था आम मिल गया 

इसी के लिए कर रहा है वो झूठ का कारोबार 

ईनाम का लालची था और ईनाम मिल गया 


अब उसकी मोहब्बत पहले सी नही लगती 

कुछ तो मिलावट है इन शोख अदाओं में 


न जाने क्या सुन लिया धड़कनों में उसने 

शर्म से वो पानी पानी हो गया 


जब करीब था उसके तो बेमजा था सबकुछ 

आज जितना मजा उसके दूर जाने से मिला 


कितना बदल गई है वो जो थी मेरी दुनियां 

हम्हीं हैं जो पुरानी बात लिए बैठे हैं 


एक मोहब्बत करके नाकाम हुए तो करो ये विचार 

दिल तो है एक तुम्हारा लेकिन इसमें कोने चार 


ख्वाबों का घरौंदा सजाए रखा है 

दर्द को मुस्कान से दबाए रखा है 

रोज खुद की तारीफ़ करता हूं उनकी तरह से 

मैने मोहब्बत का भरम बनाए रखा है 


तुम्हें जंगे मैदान में आना ही पड़ेगा

अपना जलता हुआ घर बचाना ही पड़ेगा

तुमको दिखा रहा है क़ूवत वो अपनी 

तुम्हें भी अपना पौरुष दिखाना ही पड़ेगा 


तलाश में रहो नए हां की 

पुराने ना से परेशान क्या होना 


सुना है हाकिम के कदमों में रहता है 

वही जिसने बताई थी मुझे औकात मेरी 


लगेगी धूप तो बहुत पछताएगा वो 

जिस सिरफिरे को पेड़ काटने में मजा आता है 


जमाने ने बताया था हवा मुफ्त की है 

आज मैने लोगों को सांसें खरीदते देखा 


पानी से दिल की आग बुझाई नही जाती 

धोने से रिश्तों की रंगाई नही नही 

तू तो उमर भर का ख्वाब है मेरा 

और ख्वाब की किमत लगाई नही जाती 


ये शायरी कहनेवाला , गाली कह रहा है 

देखो तो ये किसको , जाली कह रहा है 

इसकी आदत है सूरज पर उंगली उठाने की 

साबित नही कर पाएगा , खाली कह रहा है 


मैने तमाम शेर कहे है दिल के हवाले से 

आओ ये अपनी किताब ले जाओ 


दिल लगा रहे हो बरसात के मौसम में 

फिर इश्क़ में भीगने की तैयारी रखो 


झूठ ना बोलें तो क्या करें तनहा 

उनका प्यार भी तो खोया नही जाता 


एक बीमारी सारे चमन को होगई 

और किसी का कोई खुदा न हुआ 


तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को 

ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं 


जमीन सुनती रही तान बूंदों की 

बादल रात भर गाता रहा 


सूखा तालाब बता रहा है समंदर को 

लबालब पानी कैसे बहता है 


तेरे आंख में आशु हैं तो बस फिलिस्तीन के लिए 

जो जिहाद लड़ रहें हैं बस एक जमीन के लिए 

अगर है तू सच्चा इमान-ए-दीन वाला तो दर्द बराबर रख 

बलोचों , यमनों और उइ्गर मुस्लिमिन के लिए 


होते तो हैं तमाम फूल दुनियां में 

मगर गुलाब जैसा दुसरा नही होता 


वो भी इंसान है जो सरकार में है कोई जादूगर नही 

तेरी लाशों की सियासत सब को समझ में नही आएगी 

जब तिरगी ही तिरगी हो घर में भी और जहन में भी 

तो मशाल जला ले चिराग जलाने से रोशनी नही आएगी 


महसूस करना चाहता हूं मैं तुझको टचस्क्रीन की तरह 

साथ चाहता हूं मै तेरा इस जमीन की तरह 

मेरी बीमारी है तो बस एक तेरा प्यार है 

तेरा प्यार चाहिए मुझे किसी वैक्सीन की तरह 


एक चांद मेरे कमरे में भी है 

यही सोचकर सब भर चिराग नही जलाया मैने 


मुझे ये उजाला राश नही आता 

वो मेरे करीब पर पास नही आता 

मुझे बचाकर रखना है ये चिराग 

के मेरी कोठरी में चांद नही आता 


मकान मेरा बहुत जर्जर है दोस्तों

जाने ये फूलों की बरसात सह पाए या ना 


मै न जाने आदमी हूं के मशीन 

रोज मुझमें नए किरदार निकल आते हैं 


इसमें घाटा जमाने का नही है 

ये वक्त उन्हें चढाने का नही है 


उसका घर तोड़ रहा है वो अपना घर बनाने के लिए 

सरकार से जंग में है वो सरकार में आने के लिए 


बादलों का कोई सहारा नही होता 

बीना तारों के उजाला नही होता 

हमे आजमाने की गलती ना करना 

सागर का कोई किनारा नही होता 


     मेरी यह शेरो शायरी आपको कैसी लगी मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए | अपना बहुत ख्याल रखिए, नमस्कार |


शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल , कोई नोटिफिकेसन नही मिलेगा तुमको

      नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए |


कोई नोटिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 

एकतरफा इश्क़ में वेरिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


गर किसी ने तरस खाकर किया है मुहब्बत तुमसे 

फिर वो डेडिकेसन नही मिलेगा तुमको 


जुल्फें , जज़्बात और ताल्लुकात जितना उलझाओगे 

इनका सिम्पलिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


गर तुम्हें अपने प्यार पे यकीन नही तो ना सही 

अब कोई जस्टिफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


जिस्म से रूह तक बहुत सादा है तनहा 

इसका ब्यूटीफिकेसन नही मिलेगा तुमको 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

कविता , मै ने तो निमित्त रचा है

      नमस्कार , मैने ये कविता करीब दो हफ्ते पहले लिखी है जिसे मैं आज आपके लिए यहां प्रकाशित कर रहा हूं यदि कविता पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |


मै ने तो निमित्त रचा है 


कविताओं के स्वर्णिम युग का 

सृजन के सुकोमल सुख का 

काल के विकराल मुख का 

संसार रुपी अनेकों युग का 

मै ने तो निमित्त रचा है 


ये सारे के सारे प्रबंध वहीं हैं 

उपबंध वही हैं , संबंध वही हैं 

वही रस हैं , अलंकार वही हैं 

उपमाएं वही हैं , छंद वही हैं 

मै ने तो निमित्त रचा है 


मेरा ये एक स्वर है जो 

पत्थर में जो , पर्वत में जो 

मानव में जो , नदीयों में जो 

पशुओं में और कंकड़ में जो 

मै ने तो निमित्त रचा है 


अंकुरण की कल्पना हो 

वेदना हो या चेतना हो 

बुद्धि हो या अहंकार हो 

प्रकाश हो या अंधकार हो 

मै ने तो निमित्त रचा है 


    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल , इस तरह वो मुझको पराया करती है

      नमस्कार , करीब तीन चार दिन पहले मै ने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं 


इस तरह वो मुझको पराया करती है 

मिलन का वक्त बातों में जाया करती है 


समंदर तो जानता है सीमाएं अपनी 

बाढ तो नदीयों में आया करती है 


जिंदगी खुद को मेरी सास समझने लगी है 

रोज चार बातें सुनाया करती है 


उसके और उसके रिश्ते में अब क्या बाकी है 

वो उसे भइया कहके बुलाया करती है 


प्रेम , प्यार , लव , इश्क़ , मुहब्बत और बाकी सब 

नही यार वो मुझे गणित समझाया करती है 


बर्फ़बारी की तरह जब आती हैं आफतें हयात में 

तनहा लोगों को मांओं की दुआएं बचाया करती है


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

ग़ज़ल , अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती

      नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है और इसे अभी तक कहीं भी साझा नही किया सर्व प्रथम आपके समक्ष रख रहा हूं ग़ज़ल अच्छी हो गई हो तो आपका प्यार मिले 


अब ये तहज़ीब की पाखंडी सहि नही जाती 

जितनी भी दिलकश हो महबूबा घमंडी सहि नही जाती 


एक वक्त ऐसा भी तो आता है मुहब्बत में 

आती हुई गर्मी और जाती हुई ठंडी सहि नही जाती 


बहुत यकीन बाकी है सरकार पर अब भी मेरा 

मगर आखिरकार अब तो ये मंदी सहि नही जाती 


जरा सा झुकने से टूटने का डर बना रहता हो 

बेकार है ऐसी बुलंदी सहि नही जाती 


आजाद करो परिंदे को तुम अपनी कैद से 

मुहब्बत में तनहा नजरबंदी सहि नही जाती 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 11 जनवरी 2022

कविता , संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी

      नमस्कार , विश्व भर के समस्त हिन्दी प्रेमीयों को 10 जनवरी यानी विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ | हिन्दी दिवस के इस अवसर पर हिन्दी को समर्पित मेरी एक कविता देखिए 


संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


अंकल-आंट ही बस नही 

चाचा-चाची , मामा-मामी है 

फूफा-फूफी , मौसा-मौसी है 

ग्रैंडमोम-ग्रैंडडैड बस नही 

दादा-दादी , नाना-नानी है 

मोम-डैड नही माता-पिता है 

रिश्तों में और भी घनिष्ठ है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


बेलकम नही स्वागतम् है 

ये थैंक्यू नही आभार है 

मैम-सर नही महोदया-महोदय है 

मिस्टर-मिसेस नही श्रीमान-श्रीमती है 

ये लकी नही भाग्यवती है 

रिश्पेक्टेड नही आदरणीय है 

और भी बहुत शिष्ट है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


ये पानी नही है जल है 

ये धोखा नही है छल है 

ये दिल नही है ह्रदय है 

ये प्यार नही है प्रेम है 

ये हमला नही है आक्रमण है 

ये सैर नही है भ्रमण है 

शब्दों में और भी विशिष्ट है हिन्दी

संस्कृतनिष्ठ है हिन्दी 


   मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 8 जनवरी 2022

कविता , वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा

      नमस्कार , जनवरी की सर्दी चल रही है ऐसे मे आपको गर्मी बड़ी याद आ रही होगी या गर्मी से ठीक पहले आने वाली एक ऐसी रितु है जो हर मन को भाती है जी हां मैं वही कह रहा हूं वसंत उसके मौसम की चाहत हो रही होगी तो उसी पर मेरी ये कविता पढ़े और इस पर अपने ख्याल हमसे साझा करें 


वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ये सर्द कोई रात नही 

ठिठुरने की कोई बात नहीं 

पाले का भय नही 

कल नही आज नही 

अब शीत इस पर भला क्या कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


न असमय रिमझिम फुहारों का भय 

न भिगने से बिमारीयों का भय 

न बाढ़ जैसे हालातों का भय 

विचरण करना होकर निर्भय 

अब तो बादल पुर्ण मौन रहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


ग्रीष्म का कहर कौन न जाने 

लू को भला कौन ना पहचाने 

हाय रे गर्मी हर कोई माने 

पर चिलचिलाती धूप न माने 

ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा 

वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा 


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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