मंगलवार, 19 जुलाई 2022

ग़ज़ल , वो जादूगर है पल में खजाना बना दे

      नमस्कार , 26 जून 2022 को मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैने एक पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर किसी कारण बस अब तक यह प्रकाशित नही हो सकी है इसलिए मैने यह निश्चय किया की पत्रिका में प्रकाशन का मोह छोड़कर मुझे इसे आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए | ग़ज़ल का आनंद लें 


वो जादूगर है पल में खजाना बना दे 

नुमाइश ऐसी कि बस दिवाना बना दे 


वो बस बातें बना रहा है अच्छी-अच्छी 

उससे कहो मेरे धर का खाना बना दे 


अमीरी दिखाने को महल बना लिया 

ये नही की एकनया दवाखाना बना दे 


कमाल ये नही है कमाल की बात है 

बेकारों को कमाल ये जमाना बना दे 


काले बादल दिख रहे हैं आसमान में 

वो फिर बरसात का न बहाना बना दे 


फसल , धर , बाढ़ सब का बनता है 

तनहा दिल टूटने का हर्जाना बना दे 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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