बुधवार, 18 मई 2022

ग़ज़ल , जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए

      नमस्कार , यह ग़ज़ल मैने करीब ढाई महीने पहले एक पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए लिखी थी जिसे मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि आप उस समय चल रही खबरों से इसे जोड़कर पढ़ेगें तो आपको इसका ज्यादा आनंद आएगा |


उसे इस बेतुके सवाल का जवाब चाहिए 

जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए 


इस सुरत में भला तालीम को भी क्या हासिल होगा 

जहां किताब के हर पन्ने पर नकाब चाहिए 


मैं न मानूंगा तुम्हारी तरक्की पसंद दलीलों को 

यहां हर बच्ची जब तक न कहेगी मुझे किताब चाहिए 


एक ही घर है हिन्दुस्तान और हम सब को रहना है 

वही संस्कार और अदबो आदाब चाहिए 


अंजाम से बीना खौफ खाए जिसने सच बोला है 

ऐसे शख्स को मिलना तो ख़िताब चाहिए 


गैर की हयात के फैसले करते हैं जमी वाले 

ऐसे नामुरादों को भी खुदा से सवाब चाहिए 


हिन्दी और उर्दू ही नही कन्नड़ में भी शेर कहेगा तनहा 

हां बस आपकी मुहब्बतें बेहिसाब चाहिए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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