नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें
थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है
नदियों की पीर से किनारा टूटता है
जो-जो झूठ न बोल पाए चुप रहे
सच बोलने से भाईचारा टूटता है
कतार में खड़े हैं दुआएं मांगने को
खबर है आज की रात तारा टूटता है
तुम क्यों परेशॉ हो इस खामोशी से
हादसों से यकीन तो हमारा टूटता है
कच्च मकान और मुहब्बत में यकी
तनहा बरसात में सारा टूटता है
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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