नमस्कार , मैने ये कविता करीब दो हफ्ते पहले लिखी है जिसे मैं आज आपके लिए यहां प्रकाशित कर रहा हूं यदि कविता पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |
मै ने तो निमित्त रचा है
कविताओं के स्वर्णिम युग का
सृजन के सुकोमल सुख का
काल के विकराल मुख का
संसार रुपी अनेकों युग का
मै ने तो निमित्त रचा है
ये सारे के सारे प्रबंध वहीं हैं
उपबंध वही हैं , संबंध वही हैं
वही रस हैं , अलंकार वही हैं
उपमाएं वही हैं , छंद वही हैं
मै ने तो निमित्त रचा है
मेरा ये एक स्वर है जो
पत्थर में जो , पर्वत में जो
मानव में जो , नदीयों में जो
पशुओं में और कंकड़ में जो
मै ने तो निमित्त रचा है
अंकुरण की कल्पना हो
वेदना हो या चेतना हो
बुद्धि हो या अहंकार हो
प्रकाश हो या अंधकार हो
मै ने तो निमित्त रचा है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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