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गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़ज़ल , वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा 

और पूछ रहे ह़़ो किसको नही देखा 


चमेली को गुलाब समझ बैठे हो तुम 

यकीनन ही तुमने उसको नही देखा 


हकिकत ये के सिक्के के दो पहलू हैं

इल्जाम से पहले इसको नही देखा 


कशीदा पढ़ रहे हो हूरों की शान में 

मतलब ज़मीन पर उसको नही देखा 


कुछ कहने से है चुप ही रहना बेहतर 

तनहा जबतक तुमने खुदको नही देखा 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


मुस्कान पर दिल दिया आह  में मर गए 

कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए 


खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं 

तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए 


तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना 

हम  एक  मोहब्बत के गुनाह  में मर  गए 


पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक 

आज से   तुम  मेरी   निगाह में   मर  गए 


इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या 

कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए 


कातिल से तो तुम बच निकले तनहा 

हम तो  अपनों  की पनाह में मर गए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल , मै ये बात कभी नहीं बताता उसको

     नमस्कार , आज कि रात मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज सुबह आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 


मैं ये बात कभी नहीं बताता उनको 

मुहब्बत में लड़ने का हुनर नही आता उनको 


कहां कहां भटका हूं पानी की तलाश में 

वो मेरी प्यास समझते तो बताता उनको 


कितने जख्म दिए हैं उनकी बेरुखी ने 

दिल कोई चीज होती तो दिखाता उनको 


या खुदा उन्हें कोई तो गम दे रोने को 

मेरी चाहत वो मेरे कंधे पे रोते तो हंसाता उनको 


वो आज आसमान में बादल है नही तो 

चांद को उँगलीयों से छुके दिखाता उनको 


मलाल ये के असल में वो तो वो कोई हैं ही नहीं 

जब भी हम तनहा होते सताता उनको 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 9 सितंबर 2021

ग़ज़ल , उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

      नमस्कार , लगभग एक से दो हफ्ता पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 

उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

फिर दिल के भीतर की मक्कारी देखो 


गर नमूना देखना हो तुम्हें ईमानदारी का 

तो जा के कोई दफ्तर सरकारी देखो 


आज इंसानों ने बहुत तरक्की कर ली है 

मगर जानवरों की वफादारी देखो 


दवा बनाने से पहले कब्रिस्तान बनाए गए 

महामारी में सरकारों की तैयारी देखो 


एक बार में पुरा हासिल नही होगा तनहा 

मुझे देखना हो यार तो बारी-बारी देखो 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 29 मई 2021

ग़ज़ल , नही का मतलब नही , नही होता

      नमस्कार , एक दिवस पूर्व मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूं |

नही का मतलब नही , नही होता 

इस मोहब्बत मे नही , नही होता 


आंखें भी बहुत बोलती हैं उसकी 

ओठ जो कहें दें वही , नही होता 


मोहब्बत में मिला जख्म नही दिखता 

दर्द दिल के सिवा कहीं , नही होता 


सजा पाता हूं उसके किए जुर्म का 

हर बार वही तो सही , नही होता 


रहती हैं उसकी यादें सदा बनकर 

तभी तो मैं तनहा कभी , नही होता 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 26 मई 2021

ग़ज़ल , मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की

     नमस्कार , 26 मई 2021 को मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये ग़ज़ल अच्छी लगेगी 

मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की 

तुम तो सुनते हो बस इस जमाने की 


तुम्हारे महल की ठंडक तुम्हें मुबारक हो 

मेरी तमन्ना है बस मेरा घर बनाने की 


मैं वो नही के इमान को गिरवी रखदूं 

अना तो चीज ही होती है नजर आने की 


इसबार की बहार आए तो यही शर्त रखुंगा 

मुझसे वादा करो लौटकर न जाने की 


यही हुआ है के एक अरसे से मै तनहा हूं 

ये सजा मिली है मुहब्बत न समझ पाने की 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 1 मई 2021

ग़ज़ल, कोई आसान नहीं है दोस्ती

      नमस्कार , साहित्य संगम संस्थान मध्यप्रदेश इकाई पटल पर विषय - दोस्ती विधा - ग़ज़ल पर मैने दिनांक - 30/4/2021 को यह रचना की थी जिसे आपके समक्ष रख रहा हूं |

कोई आसान नहीं है दोस्ती 

कैसे आसमान नहीं है दोस्ती 


घर से कम नही है मेरा यार

मगर मकान नही है दोस्ती 


गैर जरुरी कानून है हैसियत 

कोई अपमान नहीं है दोस्ती 


गाढ़ा वक्त गुजर जाए तो कन्नी 

कोई सामान नही है दोस्ती 


घाटा मुनाफा देखते रहें तनहा 

कोई दुकान नही है दोस्ती

    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

सोमवार, 26 अप्रैल 2021

ग़ज़ल , सत्य के बीना कहीं गुजारा नही है

     नमस्कार , कल मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये नही ग़ज़ल पसंद आएगी |

सच के बीना कहीं गुजारा नही है 

तुमने ये सच जहन में उतारा नही है 


साजिशन अफ़वाह उड़ाई जा रही है 

तुम्हारा प्रधान इतना नाकारा नही है 


जिसे दोस्त समझ बैठे हो प्रधान मेरे 

वो अमेरिका दोस्त तुम्हारा नही है 


वसुधैव कुटुम्बकंम अब बहुत होगया 

ये पुरी वसुधा परिवार हमारा नही है 


नेकी का हासिल है ये दर्द का समंदर 

जिसमें लहरें तो हैं किनारा नही है 


मदद का हाथ अब मुफ्त मे मत दो 

यहां सब स्वार्थी हैं कोई विचारा नही है 


तमाम रात भर चमकता तो है सच है 

मगर ये जुगनू है यार मेरे सितारा नही है 


सियासत न करो लाशों पर हुक्मरानों 

तनहा तुम्हीं हो कोई और सहारा नही है 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 7 अप्रैल 2021

ग़ज़ल , मेरे गम , मेरे जख्म या मेरी दवा चाहते हो

        नमस्कार , मेरी ये ग़ज़ल जिसका विषय मोहब्बत है विधा ग़ज़ल है  मेरी ये रचना संगम सवेरा के मासिक ई पत्रिका मे प्रकाशित हुई है | पर उसमें एक शेर जो पांचवें क्रमांक का पर है प्रकाशित नही की गई है | आप इस पुरी ग़ज़ल को पढ़ीए और अपनी राय दीजिए | 

मेरे गम , मेरे जख्म  या  मेरी दवा चाहते हो 

एक बार बता तो दो  की तुम क्या चाहते हो 


अब इनके चहचहाने पर भी तुम्हें एतराज है 

तो क्या तुम परिन्दों तक को बेजुबा चाहते हो 


अब हर कोई तुम्हारी मोहब्बत की दुहाई देता है 

सुना  है  के  तुम  मुझे  बेइंतिहा  चाहते  हो 


मुसलसल  मन्नतें  करते हो  आजकल  तुम 

तुम  क्या  मुझे  ही  हर  मर्तबा  चाहते  हो 


फासले भी घटने नही देते नजदीकीयां भी बढ़ने नही देते 

क्या तुम जुलम भी मुझपर तयशुदा चाहते हो 


एक बस तुम्हारा दिल ही तनहा नही है तनहा 

किसी  को  तो  तुम भी  बेपनाह  चाहते हो 

       मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

बुधवार, 31 मार्च 2021

ग़ज़ल , आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं

      नमस्कार , मैने पिछले वर्ष इस ग़ज़ल को लिखा था लिखने के बाद तमाम अखबारों में पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजकर नाकाम होने के बाद आखिरकार मैने निर्णय लिया के इसे आपके साथ साझा किया जाए तो ये रही अब आप पढ़े एवं मुझे अवगत करवाएं की कैसी रही |

आंख नम है  इसलिए  चुरा  रहा हूं मैं 

ये  बात  नही है के  शर्मा   रहा  हूं  मैं 


मुसलसल कई दिनों से उन्हें एक गुलाब देता हूं 

पत्थर  पर   लकीर  बना  रहा  हूं  मैं 


कांच के टूटे तोहफ़े को फिर तोड़ रहा हूं 

अपने जख्मों पर नमक लगा रहा हूं मैं 


मैने सोचा था उनके दिल को मोहब्बत से भर दूंगा

सदा के लिए ये चिराग बुझा रहा हूं मैं 


शक के दायरे में मेरा आना लाज़मी ही नहीं 

कोई बात ही नहीं जिसे छुपा रहा हूं मैं 


तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को 

ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं 

    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 25 मार्च 2021

ग़ज़ल , न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं

       नमस्कार , एक मशहूर शायर की ग़ज़ल की बहर पर मेरी ये ग़ज़ल देखें अगर आप को अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं |

न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं 

उन्हें बार-बार  बस  हम  देखते  हैं 


हासिल  क्या  होता है  मोहब्बत  में 

हम भी एकबार खाकर कसम देखते हैं 


मुझे तड़पता देखकर कोई यकीन नही करता 

अब दर्द देखने से पहले लोग जख्म देखते हैं 


क्या वजह थी मौत की किसी को क्या मतलब 

लाश देखने से पहले लोग कफन देखते हैं 


कब तक आग के मानिंद जलता रहूंगा मैं 

तनहा आओ मोहब्बत में सितम देखते हैं 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 14 मार्च 2021

ग़ज़ल , हिसाब मागुंगा मै

       नमस्कार 🙏 मैने इस ग़ज़ल को करीब एक साल पहले लिखा था और लिखकर कॉपी बंद करके रख दिया था पिछले हफ्ते में मैने इसे टाइप करके एक अखबार में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर अखबार ने इसे प्रकाशित नही किया तो मैने कहा के साहब ये यहां वहा प्रकाशित करवाने का झंझट खत्म करते हैं और दोस्तों के साथ साझा करते हैं तो लीजिए और पढ़ कर बताइए के कैसी रही |


कुछ आंशु , कुछ जज़्बात , कुछ ख्वाब मागुंगा मैं 

आज उससे तोहफ़े में कुछ और मुलाकात मागुंगा मैं


ज़िन्दगी   तू   पाई पाई   याद  रखना  मेरा 

किसी दिन फुर्सत में बैठकर हिसाब मागुंगा मैं 


आखिर  मेरे  कत्ल  की  वजह  क्या  थी 

खुदा से इस सवाल का जबाब मागुंगा मैं


जिसे दुनियां का हर एक शख्स पढ़ सके 

खुदा  से  ऐसी  कई  किताब  मागुंगा  मैं


रात के मानिंद तिरगी है आजकल दिन में

सूरज से  कतरा भर आबताब  मागुंगा  मैं 


कुछ और बेशकीमती असार कह सके तनहा 

खुदा  से  कुछ  और  अल्फाज  मागुंगा  मैं 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 4 मार्च 2021

ग़ज़ल, मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया

       नमस्कार , लगभग हफ्ते भर पहले मैने एक छोटी सी नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है आपका प्यार मिलेगा |

मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया 

मैने जहर को असर होने होने दिया 


मै भी चाहता तो अधुरी छोड़ सकता था 

मैने कहानी को मुख्तसर होने दिया 


रात भर मर मे भी मर सकता था रिश्ता 

मगर मैने ही सहर होने दिया 


दर्द तो इतना था के मत ही पूछो तनहा 

मगर मैने उसे बेअसर होने दिया 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल, , कौन कहता है के मुझे गम है

       नमस्कार , तकरीबन एक वर्ष पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी और लिखकर मैने कॉपी अलमारी में रख दी थी अब जब वक्त मिला तो दिल किया के कुछ पुराने लिखे भी दोस्तों के साथ साझा किए जाए तो हाजिर है ये ग़ज़ल |

कौन कहता है के मुझे गम है 

ये मेरा बहुत पुराना जख्म है 


क्या शिकायत करें इस जिस्म की हम खुदा से 

जो मिला है वही कौन सा कम है 


अभी कुछ और उलझेगा अभी कुछ और सुलझेगा 

ये उनके बालों में नया नया ख़म है 


पहले भी मेरी मोहब्बत नही समझता था आज भी नहीं 

मेरा सनम अब भी वही सनम है 


मैं जो कुछ भी तेरी तारीफ़ में लिख पाता हूं 

खुदा के नमाजें फन का करम है 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल , मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

      नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके साथ साझा करना चाहूँगा और ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराइएगा |

मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

हर कहानी खुद मंजर नही कहता


जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो

घाव कितना देगा खंजर नही कहता


आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे

कितना गहरा है समंदर नही कहता


मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा 

अब हार गया है सिकंदर नही कहता

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

ग़ज़ल , इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें

        नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मै आपके सम्मुख रख रहा हूँ मेरी ये नयी ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |

इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें

तीन साल की मासूम बच्ची हैं तेरी आंखें


कोई बनावटी अंदाज नही उतरता इनमें

तुझसे तो सौ गुना अच्छी हैं तेरी आंखें


खुदा की कसम कितनी बडी़ झुठी है तू

कसम से यार कितनी सच्ची हैं तेरी आंखें


तमाम झुठ तमाम सच फिर भी हैं मासूम

तू तो होगई जवान मगर बच्ची हैं तेरी आंखें

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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

ग़ज़ल , दुल्हा और दुल्हन कि जात मिलनी चाहिए

      नमस्कार , आज ही मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है तो सोचा के क्यों न आपके साथ साझा की जाए कैसी रही मुझे अपने विचार जरुर बताइएगा |

ये शर्त नही है कि जज्बात मिलनी चाहिए

हां ये जरुरी है कि जायदाद मिलनी चाहिए


शर्त ये बनाई है इस जमाने ने शादी की

दूल्हा और दुल्हन कि जात मिलनी चाहिए


रहन-सहन ख्वाबों-ख्याल मिलें या ना मिलें

मगर रिश्तेदारों कि औकात मिलनी चाहिए


कमी तो यहां है तनहा कि दिल खुश नही हैं

मेहमानों को स्वागत में हर बात मिलनी चाहिए

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मंगलवार, 17 नवंबर 2020

ग़ज़ल , तुम्हारा मक्सद उसको बदलना क्यों है

      नमस्कार , आज ही मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है तो सोचा के क्यों न आपके साथ साझा की जाए | यह पुरी ग़ज़ल जिस विषय पर लिखी है मैने वह आजकल बड़ा ही चर्चा में बना हुआ है तो आप ग़ज़ल पढ़ीए और विषय तलाशने की को शिश करिए | आपका काम थोड़ा आसान करने के लिए मै यह बताए देता हुं कि विषय पहचानने में आपकी ग़ज़ल का मदद दुसरा और आखरी शेर कर सकता है |

समंदर को दरिया में ढलना क्यों है

तिरगी की राह पर चलना क्यों है


मोहब्बत है तो उसे वैसी ही कबूल करो

तुम्हारा मक्सद उसको बदलना क्यों है


सब को चाहिए बस रोशनी उसकी

दीए का नसिब जलना क्यों है


किसी दिन उसकी छुट्टी नही होती

सुरज को रोज निकलना क्यों है


काश के उम्र यहीं ठहर सी जाती

जवानी को बुढ़ापे में ढलना क्यों है


तनहा ने पुछा है ये सवाल तुझसे

तेरी मोहब्बत में मुझको बदलना क्यों है

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बुधवार, 4 नवंबर 2020

ग़ज़ल , हद पार प्यार कराता है

      नमस्कार , आपको करवाचौथ की हार्दीक शुभकामनाएं | इस पर्व के शुभ अवसर पर मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके समक्ष हाजिर कर रहा हूँ कैसी रही मुझे जरुर बताइएगा

सब्र भी यार कराता है

हद पार प्यार कराता है


ये चांद मी तेरे जैसा है

बहोत इंतजार कराता है


भुख मुझे भी लगती है

व्रत पुरा प्यार कराता है


ये मेरी चलनी का चांद

प्यार का इजहार कराता है


सारी उमर मैं सिर्फ तेरा हूँ

तनहा ये इकरार कराता है

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल , फला कहता है विकास की बहार आई है

      नमस्कार , मैने आज एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं अपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ पढ़ कर जरुर बताए की कैसी रही 

फला कहता है विकास की बहार आई है

मेरी दुआ तो उसकी नजर उतार आई है


सुनते हैं उसने कोई नया कानुन बनाया है

किसानों में गुस्से की खबरें हजार आई है


योगीजी के राज में बलात्कार होगया भाई

सियासत करने वालों की भरमार आई है


लगता है देश में गृहयुद्ध करा देंगें न्युज चैनल

ब्रेकिंग न्युज एक के बाद एक लगातार आई है


फलाने का लड़का अब पड़ता है रात भर

उस गांव में ना बिजली पहली बार आई है


सुखीया दद्दा बता रहे थे दुक्खीलाल को

इलाज मुफ्त जब से फला की सरकार आई है


तनहा एक तो चुनाव दो हार उस पर महामारी

विरोधी नेताओं की नयी पीढी़ ही बेकार आई है

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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