नमस्कार , कभी किसी तितली को गौर से उड़ते हुए देखा है ? , बीती सुबह मैंने देखा था | और उस तितली को जैसे-जैसे में उड़ते देखता रहा वैसे वैसे मेरे मन में एक छोटी सी कविता बन गई | वह तितली तकरीबन तीन चार रंगों की थी और एक फूल के पौधे के आसपास मंडरा रही थी |
कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है | आपका आशीर्वाद चाहूंगा | कविता का शीर्षक है -
एक तितली'
कल उड़ रही थी
फूलों पर इधर उधर
एक तितली
फूलों पर इधर उधर
एक तितली
तीन चार रंगों के पंख थे उसके
कल जब मैं बैठा था बाग में
कभी डाली से पत्तों पर
एक बार तो मेरे बगल से निकली
एक तितली
कल जब मैं बैठा था बाग में
कभी डाली से पत्तों पर
एक बार तो मेरे बगल से निकली
एक तितली
कभी फूल के पौधे से आसमान की ओर
कभी आसमान की ओर से फूल के पौधे पर मंडराया
कभी बैठे कभी उठ जाए
एक बार तो ये लगा के लो
अब यह फिसली
एक तितली
कभी आसमान की ओर से फूल के पौधे पर मंडराया
कभी बैठे कभी उठ जाए
एक बार तो ये लगा के लो
अब यह फिसली
एक तितली
आज रोज की तरह
मैं उसी बाग में हूं
लेकिन अभी तक नहीं दिखी
कोई अनहोनी तो नहीं हुई उसके साथ
बेचारी उड़ती थी ऐसे
जैसे दौड़ती हो बिजली
एक तितली
मैं उसी बाग में हूं
लेकिन अभी तक नहीं दिखी
कोई अनहोनी तो नहीं हुई उसके साथ
बेचारी उड़ती थी ऐसे
जैसे दौड़ती हो बिजली
एक तितली
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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