नमस्कार , गजल हमेशा प्रेमिका के जुल्फों की या प्रेमिका के नखरे की बात नहीं करती | गजल कभी कभी आक्रोश का तेवर भी अपना लेती है | कई आक्रोश से भरी हुई गज़लों ने कई आंदोलनों को उनके परवान तक पहुंचाया है
उसी तेवर की आक्रोश से भरी हुई आज मेरी एक ग़ज़ल देखें | यह ग़ज़ल मैंने 20 मई 2018 को लिखी थी | ग़ज़ल का मतला और शेर कुछ देखें के -
जुल्म की हद से गुजरना चाहता है
दीया गहरे तूफान में जलना चाहता है
दीया गहरे तूफान में जलना चाहता है
कल एक परिंदे ने कहा था मुझसे
सुकून से जीना है उसे इसलिए मरना चाहता है
सुकून से जीना है उसे इसलिए मरना चाहता है
मुसलसल इस शहर में खौफ का मौसम है
एक सुकून का लम्हा यहां से गुजारना चाहता है
एक सुकून का लम्हा यहां से गुजारना चाहता है
ये हालात है के खामोशी भी अब चिल्लाती है यहां
एक शख्स लोगों की जुबान पर ताले लगाना चाहता है
एक शख्स लोगों की जुबान पर ताले लगाना चाहता है
'तनहा' है के मिट जाने को तैयार ही नहीं
वो एक तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है
वो एक तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है
मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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