रविवार, 27 मई 2018

मासूमियत खतरे में है

     नमस्कार ,  एक बड़ी पुरानी कहावत है कि ' बच्चे भगवान का रुप होते हैं ' और देखा जाए तो यह कहावत सही भी है | बचपन के दिन एक इंसान की जिंदगी के सबसे सुनहरे दिन होते हैं जो उसे दुनियादारी की सारी तकलीफों को जाने बिना सुकून से कुछ वर्ष गुजारने का मौका देता है | लेकिन आज हमारे समय में जमाने की दौड़ ने , कामयाबी पाने की कोशिश में मासूम बच्चों से वही सुनहरे दिन छीन लिए हैं | और उनके कंधों पर किताबों का बोझ डाल दिया है जोकी धीरे-धीरे उनके बचपन को निगलता जा रहा है और यही कमी उन्हें शारीरिक और मानसिक रुप से कमजोर बना रही है |

  ' मासूमियत खतरे में है ' मेरी इस कविता में मैंने उन्हीं पहलुओं को दर्शाया है जो आज की सच्चाई को उजागर करती है | मेरी यह कविता तकरीबन तीन चार दिन पुरानी है जिसे मैं इस ब्लॉग पर आपके साथ साझा कर रहा हूं | मुझे यकीन है आप भी मेरे विचारों से इत्तेफाक रखते होंगे -

मासूमियत खतरे में है

मासूमियत खतरे में है

किताबों के बोझ तले
बचपन अब कंप्यूटर में जल्दी
होमवर्क का दबाव में
जैसे साइकिल हो ढलाव में
जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना
मतलब पेड़ का समय से पहले फलना
एक नया नया चेहरा के अंधेरे में है
मासूमियत खतरे में है

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

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