नमस्कार , गजलें हमेशा से ही मन की खुर्चनो को , गमों को , बेदारीयों को जाहिर करने का जरिया रही हैं | मेरी एक और नई ग़ज़ल का लुफ्त उठाने की कोशिश करें |
इस ग़ज़ल की भूमिका में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि यह ग़ज़ल एकदम से कुछ नया मिल जाने की कशमकश है | ग़ज़ल का मतलब और कुछ शेर देखें के -
एक खंडहर सा वीरान था मैं
एक पूरे मोहल्ले से अनजान था मैं
एक पूरे मोहल्ले से अनजान था मैं
एक कतरे ने पहचान लिया था कभी
एक ऐसा निशान था मैं
एक ऐसा निशान था मैं
ये तो राजनीति ने बांट दिया मुझे
वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं
वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं
इश्क ने पेचीदा बना दिया है मुझे
नहीं तो पहले आसान था मैं
नहीं तो पहले आसान था मैं
सियासत की तल्खी ने कतरा कतरा काटा है मुझे
पहले तो एक सुंदर गुलिस्तान था मै
पहले तो एक सुंदर गुलिस्तान था मै
'तनहा' होकर खुशगवार हूं मैं
महफिल में था तो बेजान था मैं
महफिल में था तो बेजान था मैं
मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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