बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 13

      नमस्कार , सितंबर महिने और अब तक में मैने ये कुछ नए मुक्तक लिखें हैं जो मेरी पिछली चली आ रही श्रंखला 'चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे' का हिस्सा है | मैं ये चाहुंगा के आप इन मुक्तो को भी पढे जिस तरह से आपने मेरे सभी पुराने मुक्तकों को पढा है |

भले ही हर बदन पर खादी नही है
यहा हर कोई उदारवादी नही है
हर व्यक्ति हर वर्ग हर जाती एक समान है
चलो सुकून है आज का समाज मनुवादी नही है

रेगिस्तान के खेतों में चूडी खनकेगी
हर खलिहान के माथे पर बिंदी चमकेगी
ये बता दो पत्थर की इमारतों को
सब्ज जमीन पर जिंदगी पनपेगी

रेट के टीलों को सजल कहने वाले
खेत के खरपतवारों को फसल कहने वाले
मोहब्बत का एक मिसरा नही लगा पाए
चलो निकलो ,बड़े आए हैं गजल कहने वाले

उजागर है दुनिया में सच छिपा नही है
ये बता कि आज तुझसे कौन खफा नहीं है
ये जो खुद को मसीहा कहता है पड़ोसियों का
ये शख्स तो अपनों का सगा नही है

मोहब्बत अबकी बार है , नई बात है यार
पहला-पहला प्यार है , नई बात है यार
मैं तो हर रोज करता ही था मगर इस बाल
उसे मेरे ऑनलाइन आने का इंतजार है , नई बात है यार

हर मदहोश शख्स में बस शराबी देखते हैं
ये क्या लोग हैं के बस खराबी देखते हैं
उन यारों का याराना छुट गया यार वरना
मेरे यार तो हर मौसम में ख्वाब गुलाबी देखते हैं

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      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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