शनिवार, 30 नवंबर 2019

ग़ज़ल, देख रहा हुं मै

     नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

दुनिया भर का जुल्म अपने अंदर देख रहा हुं मै
खुन कि दरिया खुन का समंदर देख रहा हुं मै

क्या बताउ तुम्हे मैने सब भर ख्वाब में क्या देखा
अपने ही मौत का मंजर देख रहा हुं मै

क्यों ना रोऊ बारुद कि खेती सुनकर
सारी कि सारी धरती बंजर देख रहा हुं मै

अब भी वक्त है इंसानो रुख जाओ
हिलती हुई जमीन हवाओ में बवंडर देख रहा हुं मै

क्या कहुं कि खुदा गुनाह माफ करदे मेरे
तनहा कयामत का मंजर देख रहा हुं मै

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      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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