शनिवार, 30 नवंबर 2019

कविता, जिसके पास रजाई नही है

   नमस्कार , ठंड का मौसम कई मायनों में सब के लिए अलग अलग चीजों के लिए याद रहता है कुछ के लिए मिठे एहसास तो कुछ के लिए कडवे और एक चीज जो इसके केंद्र में रहती है वो है रजाई | पर आज मै इस कविता के माध्यम से हमारे देश भारत के उस वर्ग की बात जो गरिबी रेखा के निचे आते है जिनके नसिब में दो वक्ता भर पेट खान नही है तन पर पुरे कपडे नही है मगर शायद हमारे इसी देश का एसी कार से धुमने वाली बहुमंजिला इमारतों में रहने वाला हवाई जहाज में शफर करने वाला वर्ग समझ ही नही सकता | वैसे तो भारत कि कई जगह कि सर्दीया मसहुर है मगर दिल्ली कि सर्दी की बात ही अलग है

जिनके पास रजाई नही है

अपने बिस्तर पर
अपनी रजाई में दुबका हुआ हुं मै
इस सच से बेखबर की
यही ठंड तो उनके लिए भी है
जिनके पास रजाई नही है
मखमल का कंबल नही है
कंबर तो दूर पुरे तन पर वस्त्र नही हैं
विवाईयां हैं पाव में चप्पल नही है
बिमारीयां तो बहुत हैं
मगर दवाई नही है
और मै सबसे कहता फिरता हुं
बहुत ठंड है

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