शनिवार, 30 नवंबर 2019

कविता, अंगीठी , चमगादड

     नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज दुसरी बार दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

अगीठी

कुडकुडाती ठंड में
रात कि गिरती ओश में
सूबह के जाडे में
हाथों को जमने से
पुरे बदन को ठीठुरने से
कानों को गलने से
कौन बचाती है
अंगीठी

चमगादड

उल्टी फितरत
टेढी नियत
आवाज की तेजी
पंखो की ताकत
डरावनी सुरत
नाम जरुरत
दुश्मनों मे दहशत

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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