नमस्कार , मेरी ये कविता दरहसल पहली बार करवा चौथ करने वाली वन विवाहित महिलाओ पर आधारित है और मेरी यह कविता मेरी अनुभुतियों का शाब्दीक रुप है
पहला करवा चौथ
करवा में जल भास्कर
पुरवा से ढक कर
चलनी में दीप रखकर
सोलह सिंगार कर
दिन भर का उपवास कर
सुहागने सुहाग के साथ
कर रहीं है चौथ के चांद की प्रतीक्षा
सदा प्रेम इसी तरह बना रहे
यही है मन कि इच्छा
दिन भर की भूखी प्यासी
सुहागन की मनोकामना
इतनी कठिन तपस्या के बाद
हे चंन्ददेव अब और न लो
मेरे सब्र कि परीक्षा
निकलआओ गगन में
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इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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