नमस्कार प्रणाम अर्पित करता हूं आपको , ये एक और छोटी सी नज्म पेशे खिदमत है मुझे उम्मीद है कि मेरी ये रचना आपको आनंदित करेगी |
हम निगाहों के लहरों में बहते जा रहे हैं
नजाने किनारा यूं खो सा गया है
नजाने किनारा यूं खो सा गया है
सहते जा रहे हैं हम बेवफाई के दर्दों को
मरहम हमारा कहीं खो सा गया है
मरहम हमारा कहीं खो सा गया है
बस्तियां बसेंगी मेरी कब्र पर
प्रियतम हमारा हमसे दूर हो सा गया है
प्रियतम हमारा हमसे दूर हो सा गया है
आंखें बिछी हैं आपके सफर पर आशिकों की
हमारे मोहब्बत का तो कबाड़ा सा हो गया है
हमारे मोहब्बत का तो कबाड़ा सा हो गया है
मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें