शनिवार, 8 दिसंबर 2018

कविता, जब मैं इसआंगन में आई थी

नमस्कार , नारी दुनिया में उपस्थित हर भावना का केन्द्र होती है | नारी मन की एक कोमल भावना से भरी ये कविता जिसे लिख लेने के बाद मै स्वयं आश्चर्यचकित था के ये भावना मेरे मन में कैसे आई , फिर लगा के ये उस भगवान का आशीर्वाद है जो मैने लिखा है | एक नव युवती जिसका विवाह होने वाला हो और वह विवाह के बाद आने वाली ज़िन्दगी को सोचकर व्याकुल हो तो उसकी मां के द्वारा कि गई समझाने की कोशिश इस कविता की विषय है | मां बेटी को समझाते हुए कुछ यू कहती है की -

जब मैं इस आंगन में आई थी

जब मैं इस आंगन में आई थी
तो खूब रोई थी 

सोचा था यह कहा आ गई मैं
पराए देश में ,अनजाने घर में
अजनबी लोगों के बीच
मुंह में सिसकियां ,आंखों में आंसू ,दिल में डर था
मन में बस एक ही सवाल था
मां-बाबा आपने मुझे पराया क्यों किया
इसलिए कि मैं बेटी थी

सुबह से दोपहर ,दोपहर से जब शाम हुई
मैं थोड़ा शरमाई ,थोड़ा घबराई
और शाम से सुहानी सुबह हुई
एक ऐसा जीवनसाथी मिला जिसके संग चलते-चलते जिंदगी अब आसान हुई
माा  सा  प्यार सासूमां से मिला
बाबा का दुलार ससुरजी ने दिया
और छोटी ननद मेरी सहेली थी

इस परिवार से मिली तो जाना
ना यह देश पराया था ,ना यह घर अनजाना था
ना यह  लोग अजनबी थे
यह तो मेरा घर था जिससे मैं अनजानी थी
मैं अधूरी थी इस घर के बिना
यह जान मैंने मां-बाबा का शुक्रिया किया
आपने मुझे मेरा घर दिया
अब मैं इन्हीं रिश्ते में खोई थी

जब मैं इस आंगन में आई थी
तो खूब रोई थी 

    मेरी कविता के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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