रविवार, 30 दिसंबर 2018

नज्म, कही गुस्ताखी न बन जाए यह जवानी

       नमस्कार प्रणाम , दिसंबर 2012 की 10 रचनाओं की अगली कड़ी में मै आपके दयार में एक नज्म प्रस्तुत कर रहा हूं आपके अपनाव की आशा है |

आज जिंदगी लिख रही है यह एक नई कहानी
होश में आ जा मस्ताने कहीं गुस्ताखी न बन जाए यह जवानी

रोमटे सिहर उठे हैं देखते ही यह रवानी
जंग है हाथ में शमशीर है तो इतिहास को दे दे एक नई मुंह जबानी

चाहते तो बहुत थी पर भूल गई वह दीवानी
न जाने कौन छोड़ गया उसे मेरी यादों में महकती है जैसे ही कोई रात रानी

कल की परवाह है किसे है एक जिंदगानी
इसे जी ले या बहा दे ऐसे जैसे बहता है नदियों में पानी

आज काली रात है तो कल होगी सहर सुहानी
उम्मीद ना छोड़ तू यही है जो कल होंगी बढ़कर सयानी

दर्द दिल में जो छुपा है ,  तू जानता है हमें आंसू नहीं बहानी
बता दे दुनिया वालों को ना देख तू तारे आसमानी

    मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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