रविवार, 9 दिसंबर 2018

ग़ज़ल, अगर

नमस्कार , एक बेहद पुरानी गजल मेरी जिसे लिखे हुए तिन साल से भी ज्यादा का वक्त हो गया आज आपके दयार के हवाले कर रहा हूं |

खुशियों का नहीं गमों का उंगलियों पर हिसाब रखते हो, अगर
आपका साथ चाहूंगा मुझसे इत्तेफाक रखते हो, अगर

दलदली जमीन पर पांव जमाने का प्रयास करते हो, अगर
गिर कर संभल जाते हो उठने का प्रयास करते हो,अगर

भीड़ में भी तुम्हारी बात गूंजेगी
बादलों के गर्जन सी दमदार आवाज रखते हो ,अगर

शक के दायरे में आना तुम्हारा लाजमी है
रुख पर किसी तरह का नकाब रखते हो ,अगर

फिर सारी दुनिया  की तकलीफै तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं
दिल में ज्ञान का अथाह प्रकाश रखते हो, अगर

मैं जानता हूं कि तुम मेरे आने का स्वागत करोगे
मन में जरा भी दोस्ताना मिजाज रखते हो ,अगर

    मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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