शनिवार, 8 दिसंबर 2018

नवगीत, मै क्या कहके बुलाऊं तुझे

    नमस्कार , नवगीत की यही खासियत होती है कि उसमे नवीन और विभिन्न तरह के प्रतीकों का प्रयोग होता है | आज से तिन चार दिन पहले मै ने एक नवगीत लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं , आपके अपनाव की चाहत है | यह नवगीत मोहब्बत के एक छोटे से मगर बेहद खूबसूरत और महत्वपूर्ण एहसास और सवाल पर आधारित है |

अप्सरा कहूं या कोई परी
या कहूं गुलाब खुशबू भरी
महताब कह दूं रातों की या
या कह दूं तुझे महजबी
मैं कैसे मोहब्बत जताऊं तुझे
मैं क्या कहके बुलाऊं तुझे

तेरी रूह मुझ में समाए ऐसे
जैसे नदियां मिलती है सागर में
तेरा मेरा मिलना हो ऐसे
जैसे सुखी नदियां भरती है बरसते बादल से
मुझ पर मोहब्बत का साया कर ऐसे
जैसे खुद को तू ढकती है आंचल से
मैं कैसे चाहत बताऊं तुझे
मैं क्या कहके बुलाऊं तुझे

तुझको अपना शिवाला माना
प्यार का ईश्वर तुझको जाना
गीता का ज्ञान तुझको जाना
कुबेर का तुम सारा खजाना
जमाना कहे मुझको दीवाना
दिल चाहे तुझको अपना बनाना
मैं कैसे प्यार दिखाऊं तुझे
मैं क्या कहके बुलाऊं तुझे

    मेरी नवगीत के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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