नमस्कार , दिसंबर 2012 की रचनाओं की अगली कड़ी में एक कविता सुनाना चाहता हूँ | कविता कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा |
नई उम्मीदें नई आदतें सीखो
पलकों में नए सपने
सजाकर रखना सीखो
अरमानों को कुचल
दर्द भुला कर चलना सीखो
जीवन पथरीली डगर है
जख्मों को सहलाना सीखो
सजाकर रखना सीखो
अरमानों को कुचल
दर्द भुला कर चलना सीखो
जीवन पथरीली डगर है
जख्मों को सहलाना सीखो
चार कदम चले हो
थक गए क्या
इस थकन को भुलाना सीखो
क्या हुआ अगर
मुश्किलें हैं , बहुत
पर गिरकर संभालना सीखो
थक गए क्या
इस थकन को भुलाना सीखो
क्या हुआ अगर
मुश्किलें हैं , बहुत
पर गिरकर संभालना सीखो
तिल तिल कर क्यों मरोगे
अपराध के खिलाफ तुम लड़ना सीखो
क्या कहा तुमने की
सुनता नहीं जमाना
तो तुम भी जमाने में
जोर से कहना सीखो
अपराध के खिलाफ तुम लड़ना सीखो
क्या कहा तुमने की
सुनता नहीं जमाना
तो तुम भी जमाने में
जोर से कहना सीखो
भूल गए वह दिन जब
लोग तुम पर हंसते थे
अब तुम भी उन पर हंसना सीखो
गुमसुम से हो क्यों
दर्द हुआ था क्या
अब तुम भी ठोकरों को दर्द देना सीखो
लोग तुम पर हंसते थे
अब तुम भी उन पर हंसना सीखो
गुमसुम से हो क्यों
दर्द हुआ था क्या
अब तुम भी ठोकरों को दर्द देना सीखो
मिलती नहीं है नदियां
अब जाकर सागर में
अब तुम भी अलग रहना सीखो
क्या कहा उसने तुम्हें
तुम कायर हो , तुम बुजदिल हो
तुम बुजदिल नहीं हो पलट कर कहना सीखो
अब जाकर सागर में
अब तुम भी अलग रहना सीखो
क्या कहा उसने तुम्हें
तुम कायर हो , तुम बुजदिल हो
तुम बुजदिल नहीं हो पलट कर कहना सीखो
मेरी कविता के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें , अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें