नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी
मेरे दिल मे जाने कहां ठहरा है
जहा तुने कहा था वहा ठहरा है
वक्त तो वर्षों गुजर गया मगर
वही का वही एक लम्हा ठहरा है
उसने यू ही फेंके थे कंकड तालाब में
तभी से पानी जहा ठहरा है
ईतना मीठा लहजा था उसका के
कैद से आजाद परिंदा सहमा ठहरा है
ताजमहल एक फरेब है नही मानोगे
क्या किसी मुमताज के लिए शाहजहॉ ठहरा है
ये कहाबत के वक्त खुद को दोहराता है
तबी से एक शख्स तनहा ठहरा है
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इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
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