गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल, शक होता है

     नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

मूहं लाल ना हो तो पान पे शक होता है
हर वक्त फिसलने वाली जुबान पे शक होता है

दिल में सुई चुभती है किसी कि बेरुखी पर
मेरी जान अपनी जान पे शक होता है

कैसी मोहब्बत है तेरी बोलकर इजहार भी नही कर सकता
गर ये है तेरा इमान तो तेरे इमान पे शक होता है

ये कैसा अंजाम हुआ जो कातिल के हक मे गया
मुझे तो तेरी बताई दास्तान पे शक होता है

हमारे कुनवे हमारे अहद कि जहनीयत ही यही है
बेटा गर आवारा हो तो पुरे खानदान पे शक होता है

आदमखोर हों या हैवान सब इसी बस्ती से निकलते हैं
मै जिसे भी देखता हुं यहा हर इंसान पे शक होता है

कितने फर्जी रहनुमा घुम रहे है यहा खुदा बनकर
खुदा मुझे तो अब तेरी असल पहचान पे शक होता है

     मेरी ये गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

1 टिप्पणी:

  1. हमारे कुनवे हमारे अहद कि जहनीयत ही यही है
    बेटा गर आवारा हो तो पुरे खानदान पे शक होता है
    .....सटीक सुन्दर लाजवाब रचना।

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