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रविवार, 8 सितंबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 11

     नमस्कार, पिछले एक महीने के दरमिया में लिखे गए अपने कुछ मुक्तक आपकी महफिल में रख रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि आपको मेरे यह मुक्तक अच्छे लगेंगे

सिर्फ तुझी से मोहब्बत करने का वादा दे दूं
जिंदगी कोई बर्फी नहीं है के तुझे आधा दे दूं
खुश रहने का बस इतना ही वक्त मयस्सर हुआ है मुझे
कम मेरे पास ही है तुझे ज्यादा दे दूं

एक चहचहाता हुआ परिंदा मरा बैठा है
उधर से मत जाना एक दिलजला बैठा है
मसला ये है के महफिल में शेर पढ़ना है मुझे
और आज ही के दिन मेरा गला बैठा है

कभी दिवार , कभी छत , कभी मका बनी रही
खुद में कैद होकर सबके लिए जहां बनी रही
हजारों दर्द सहती रही चुप रहकर
एक मां बच्चों के लिए बस मां बनी रही

वो कहते हैं के बजन नहीं है तुम्हारे शेर कहने में
यार मजा तो है बजन के बगैर कहने में
हमारे दरमियां तालुकात अपनों से भी गहरे हैं
मगर वो लगते हैं मेरे गैर कहने में

कुछ तुम्हारी सुनेंगे कुछ अपनी सुनाएंगे
चांद पर जाने का सपना देखेग दिखाएंगे
हमारी कामयाबी ये है कि हमने नया रास्ता बनाया है
जिस पर चलकर लोग अपनी मंजिल तक जाएंगे आएंगे

हर सहर आफताब का निकलना तय है
हर साख ए गुल का लचकना तय है
मुझे तुझसे क्या जुदा करेगी ये दुनिया
हर दरिया का समंदर में मिलना तय है

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गुरुवार, 22 अगस्त 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 10

     नमस्कार, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे मुक्तको की इस श्रेणी में आज मै आपको पिछले एक महीने के दरमियान में लिखे मेरे कुछ मुक्तक यहां सुना रहा हूँ

अब अमन की आशा की दिखावे की वो आवाज नही आएगी
उनको समझ में ये खरी बात नही आएगी
जिनकी ख्वाहिश है हिन्दुस्तान के टुकडे करना
उनको कश्मीर की खुशहाली कभी राश नही आएगी

अब जाकर खत्म ये महाभारत हुई है
पहले तो केबल तिजारत हुई है
जिस जन्नत को जहन्नुम बनाया गया था
अब वो कश्मीर घाटी भारत हुई है

भक्त सारे कह रहे हैं , सुशासन है सुशासन है
पर मैं ये कहता हूं , कुशासन है कुशासन है
बच्चियों का चीरहरण देखकर आज भी जो चुप है अपने सिंहासनों पर बैठे हुए
वो सब के सब भी , दुशासन हैं दुशासन हैं

मजहब की आड़ में अपने पर हुए जुल्मों का हिसाब दे दिया
एक कानून बनाकर सरकार ने कई प्रयासों को खिताब दे दिया
सही मायने में इंसाफ और बराबरी आज मयस्सर हुई है इन्हें
अब खवातीनो ने मर्दों की गुलामी को तीन तलाक दे दिया

आसमान से जमीन के शफर में नया हौसला ढूँढ रहे हैं
जिंदगानी बदल दे ऐसा कोई फैसला ढूँढ रहे हैं
हम नयी उमर नए परों के परिंदे
अपना पुराना घोंसला छोड़ नया घोंसला ढूँढ रहे हैं

हिंसा और अधर्म का पर्याय देखना हो तो बंगाल आओ कभी
चिलचिलाती धूप में बसंती बयार अनुभव करना हो तो नैनीताल आओ कभी
लगता है एसी कार और पच्चीस मंजिला मकान मे रहकर भरम होने लगा है तुम्हें
सहिष्णुता तुम्हें देखनी ही है अगर तो वक्त निकालकर भोपाल आओ कभी

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मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 9

  नमस्कार, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे मुक्तको की इस श्रेणी में आज मै आपको पिछले एक महीने के दरमियान में लिखे मेरे कुछ मुक्तक यहां सुना रहा हूँ

थोडा थोडा हर किसी के नाम करना है मुझे
अपनों की खुशी का इंतजाम करना है मुझे
मुझे प्यार करना हो तो जरा जल्दी आओ
नही तो फिर बहोत काम करना है मुझे

सोचता है के खून बहाने का इल्जाम नहीं आएगा
गुनहगारों की फ़ेहरिस्त में तेरा नाम नहीं आएगा
ये जो तू रो रहा है दुनिया को दिखाने के लिए
तेरा ये हथकंडा भी तेरे काम नहीं आएगा

अल्लाह का वास्ता और रब के नाम पर
ये सारी शायरी है तेरी तेरे मतलब के नाम पर
सियासत ने सिखाई है ये पैंतरेबाजी तुझको
और कितना भड़काओगे इन्हें मजहब के नाम पर

मोहरे और खानदान का रिश्ता बेमेल देखा है
चारा , कोयला , 2जी , 3जी आदि घोटालो का रेलमरेल देखा है
अबकी सरकार का काम सारे देश को दिखाई दे रहा है
वरना हमने दस सालों तक कठपुतली का खेल देखा है

घनी रात के बाद सहर होने में वक्त लगेगा
जहर को पुरा बेअसर होने में वक्त लगेगा
सत्तर साल पुरानी बिमारी का इलाज हुआ है
दवा का असर होने में थोडा वक्त लगेगा

किसी ने कहा लाचार बेचारा हूं मैं
कोई कहता है नाकाम आवारा हूं मैं
दुनियावालों अब तुम्हें क्या बताउं रंजो गम अपने
बस इसी पीने की लत का मारा हूं मैं

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रविवार, 21 जुलाई 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 8

नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें

वो जमीन दरगाह हो जाती है जहां किसी नवाजी का सर लगता है
वो धरा किसी तीर्थ से कम नही जहां प्रसाद वितरण का लंगर लगता है
न मंदिर तोड़ो न मसजिद तोड़ो न चर्च न गुरुद्वारा
अब मुझे जलता हुआ हिन्दुस्तान देखकर डर लगता है

जमुरियत को लगा है आजार कहेंगे
आस्तीन के सांपों को मक्कार कहेंगे
हमारी हिम्मतअबजाई करो जमुरियत वालों
हम मुल्क के गद्दारों को गद्दार कहेंगे

हीज्र कि रात गुजरती है सहर छोड़ जाती है
नदी कि बाढ उतरती है लहर छोड़ जाती है
मेरा जिस्म जिस कदर आग का दरिया बना है
बुखार उतर भी जाए तो असर छोड़ जाती है

नही चाहिए था मोहब्बत का इस कदर नुमायाँ होना
अपने ही जिस्म है और किसी और का साया होना
मोहब्बत चुनने की आजादी सब को होनी चाहिए ये हक है
मगर अच्छा नही है बेटियों का इस कदर पराया होना

हेराफेरी का हिसाब जायज़ नही है
बेअदबी से दिया जबाब जायज़ नही है
इंसाफ करने के लिए अदालते हैं , मुंसिफ हैं
यू भीड़ का इंसाफ जायज़ नही है

खुदा जिन्दा रहे ना रहे भगवान जिन्दा रहे ना रहे इंसान जिन्दा रहना चाहिए
सरकार कोई भी आए निजाम कोई हो हालात कैसे भी हो दिल में हिन्दुस्तान जिन्दा रहना चाहिए
जंगवाजों जंगवाजी यू भी दिखाई जाती है
हार हो या जीत हो दुश्मन शर्मिंदा रहना चाहिए

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मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 7

नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें

मुख्तसर शफर हो इसलिए पुराना शहर छोड़ा हैं मैने
नए दिन रात के लिए पुराना साम सहर छोड़ा है मैने
मोहब्बत का एक नया आशियाना बनाने के लिए
उस शहर में अपना पुराना घर छोड़ा हैं मैने

अपने किए के होने वाले अंजाम से चीढ होती है
तपती धूप पसंद लोगों को सर्द साम से चीढ होती है
क्या गज़ब होगा के कोई शैतानो का मुरीद हो यहां
हिन्दुस्तान में अब लोगों को राम के नाम से चीढ होती है

तुझसे दिल लगाने का मलाल है मुझे
अपने दिल की बात न कह पाने का मलाल है मुझे
तेरे मेरे दरमिया ये दूरीया ये दुनिया नही होती तो बहोत अच्छा होता
तेरे बगैर मुस्कुराने का मलाल है मुझ

एक ही हूजरे में कई लोग रहते हैं
खुदा तेरे सजदे में कई लोग रहते हैं
आज पुरानी तसवीरों की एक किताब मिली तो ये जाना
मेरे दिल के हर कोने में कई लोग रहते हैं

जो शर्म उचित वक्त पर आए ना उस शर्म पर लानत है
जो कर्म समाजहित में ना हो उस कर्म पर लानत है
देशप्रेम व्यक्त करने वाले शब्दों के उच्चारण से आपत्ति है जिसे
जिस धर्म में राष्टप्रेम गुनाह है उस धर्म पर लानत है

तू इस कहानी का हिस्सा नया नया नही है
तेरा मेरा किस्सा नया नया नही है
मै जानता हूं वो बहोत खफ़ा है मुझसे
मगर उसका ये गुस्सा नया नया नही है

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शनिवार, 22 जून 2019

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करूंगा 6

    नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की

मैने सोचा था कि दरिया के किनारों पर चल रहा हूं मैं
किसी नेक ख्याल शख़्स के विचारों पर चल रहा हूं मैं
मगर अब जाकर जादूगर का तिलिस्म टूटा है
एक क़ातिल के इशारों पर चल रहा हूं मैं

मुझे असहिष्णुता शब्द कहने में डर लगता है
मुझे यकीन है आपको सच सुनने में डर लगता है
यही होगा जमीर मरना , इस मुल्क ने जिन्हें सोने के घर दिए हैं
उन्हें हिन्दुस्तान में रहने में डर लगता है

हिन्दुस्तान की नयी तस्वीर बनायी जा रही है
नफरत फैलाने में पारदर्शिता लायी जा रही है
जातीय समीरण राजनीति का भगवान है
तभी तो भगवानो की जात बताई जा रही है

अब ध्रुवीकरण शब्द मुद्दा बना है
क्या राष्ट्रहित में बोलना मना है
जिन्हें लगता है अब देश केवल एक ही रंग में रंग जाएगा
तो याद रखना की वो एक रंग भी कई रंगों से मिलकर बना है

तुम्हारा सच अपने चश्मे से दिखा रहा है
कोई तो बात है जो तुमसे छुपा रहा है
वो जानता तुम अपने मुल्क से बहोत प्यार करते हो
अपनी जीत के लिए वो तुम्हारी भावनाओ का फायदा उठा रहा है

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मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा 5

     नमस्कार, दो तीन महीनो के बीच अपने लिखे हुए कुछ मुक्तक आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं | इन मुक्तकों में कुछ सच कुछ किरदारों को बया करने की कोशिश की है मैने अब आपको इन किरदारो को पहचानना है यहां से आपकी जिम्मेदारी अब ज्यादा बनती है मेरी इन रचनाओं के साथ न्याय करने की

नफरत को धुल चटाया है
मोहब्बत ने गुल खिलाया है
ये कसीदा नही हकीकत है
एकतरफा जनादेश आया है

ऐसे ही हीज्र का गम मनाएंगे हम
खूब हंसेंगे और मुस्कुराएंगे हम
इतनी नजदीकी भी दम घोंट देगी
थोडा नफरत के करीब जाएंगे हम

इंतजार के लम्हे गुज़रते नही जल्दी
मुकद्दर में लिखे हालात बदलते नही जल्दी
जिस्म पर लगे घाव तो मरहम लगाने से भर जाते हैं
जहन पर लगे जख्म भरते नही जल्दी

इंसानों की पोशाक पहनकर आगए हैं
जानवर की जात में बदलकर आगए हैं
नोच नोच कर खाने लगे हैं मासूम बच्चीयों को
लगता है मेरे शहर में भी कुछ आदमखोर आगए
हैं

हयात में किरदार बचाना पड़ता है
जंग में हथियार बचाना पड़ता है
हयात जंग सियासत में शिकस्त हो तो हो
सर नहीं दस्तार बचाना पड़ता है

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रविवार, 12 मई 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 3

      नमस्कार , हाल के दो तीन सप्ताह में अपने लिखे कुछ नए मुक्तक आपकी महफ़िल के हवाले कर रहा हूं पढ कर जरूर देखिएगा शायद किसी लायक हों

फुल बन के महक जाउंगा
तेरी यादों में घर बनाउंगा
जब भी देखों गी तू किताबों को
बस मै ही मै याद आउंगा

और कहीं मत चली जाना
इतना भी मत कहीं भुल जाना
जाते वक्त छोड़ गई थी जहां
जब भी आना वही आ जाना

तेरी वाह वाही नही मिलेगी तो मेरी हर शायरी बेकाम हो जाएगी
गमों से भरी हुई हर मुस्कराती साम हो जाएगी
ताउम्र मेरी किसी भी बात का बुरा मत मानना मेरी यार
तू जो मुझसे रुठ जाएगी तो मेरी रातों की नींदें हराम हो जाएगी

फ़रेबीयों कि भीड़ में अकेली सच्ची दिखती है
तू बहोत क्यूट सच्ची मुच्ची दिखती है
ये  मासूमियत ही तो पहचान हैं तेरी
मेरी यार जब तू हंसती है ना बहोत अच्छी दिखती है

ये तो सवाल ही नही है कि कौन किसको नही समझता
मसला ये है के दोनों में से कोई मोहब्बत नही समझता
रात दिन यही कह कर लड़ता है एक प्रेमी जोड़ा
तू मुझे नही समझता तू मुझे नही समझता

तेरे लिए जीउंगा तेरे तेरे लिए मर जाऊंगा
तू वो नगमा है जिसे मैं गुनगुनाऊंगा
मैं ने जो वादा किया है उस पर यकीन करना
मै नही हूं कोई नेता जो वादा करूंगा भुल जाऊंगा

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मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 4

    नमस्कार , हाल के दो तीन सप्ताह में अपने लिखे कुछ नए मुक्तक आपकी महफ़िल के हवाले कर रहा हूं पढ कर जरूर देखिएगा शायद किसी लायक हों

बुज़ुर्गों की दुआएं भी दौलत की तरह होती है
नेक इंसानों की शख़्सियत भी सोहरत की तरह होती है
यही गलती कहीं तुम भी तो नही कर रही हो
बहोत ज्यादा नफरत भी मोहब्बत की तरह होती है

कम शब्दों में बड़ी बात कह रहा हूं समझ जाओ ना
इसी लहजे में दिल के ज्जबात कह रहा हूं समझ जाओ ना
तुम तो मेरी धड़कनो में हो सांस बनकर
मै तुमसे कहना चाहता हूँ वही बात समझ जाओ ना

ऐसे ही 72 हजार खाते में आएंगे
सरकार गर बनाएंगे तो कर दिखाएंगे
नयी तकनीक का ये दौर है ये भी है मुमकिन
आलु की अब सब्जी नही सोना बनाएंगे

जो थे पहले संत्री उन्हें मंत्री बना दिया
इतने घोटाले कर दिये की जेल भर दिया
अब होगा न्याय वादा ये पुरा भी कर रहे हैं
खून लगे हाथों को मुख्यमंत्री बना दिया

अब गठजोड़ कर लेना यही इंतजाम है
नाम बदले चोरों का अब काम तमाम है
उनके परिवार कि दौलत है उनके नाम होनी चाहिए
प्रधानमंत्री बनना तो ख़ानदानी काम है

हम सबसे बड़े लोकतंत्र अभिमान कीजिए
संविधान से मिले हक का भी सम्मान कीजिए
एक वोट तय करेगा इस देश का भविष्य
मतदान है कर्तव्य मतदान कीजिए

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बुधवार, 24 अप्रैल 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 2

    नमस्कार, कागज पर आडि तिरछी लकीर के समान कुछ पांच छह महीने में जो थोड़े बहोत मुक्तक लिख पाया हूं उन्हें आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं

पढने लायक किताब हो जाओ तो बताना मुझे
कोई नया ख़िताब हो जाओ तो बताना मुझे
क्या कहा तुम मेरी मोहब्बत हो ठीक है
जब मुझसे बेहिसाब हो जाओ तो बताना मुझे

अब अथाह गहराई तक उतरना पड़ेगा तुम्हें
ओंठ से दिल तक का रास्ता बहोत लम्बा है बहोत दुर तक चलना पड़ेगा तुम्हें
इस कमरे के हर कोने को रोशनी की जरुरत है
जुगनूओं अब चिराग बनकर जलना पड़ेगा तुम्हें

इस रात की सहर होगी तो नजर आएगा ये साया कौन है
ये तो वक्त ही बताएग तुम्हारा अपना कौन है पराया कौन है
रुको जरा गौर से सुनने दो ये आहट मुझे
कुछ मालुम तो चले मेरे दिल में आया कौन है

डर दिखाकर प्यार खरीदने आया है
मजहब के नाम पर एतबार खरीदने आया है
ये सोचकर अपने सपने मत बेच देना
बिरादरी का है पहली बार खरीदने आया है

करना ही चाहो अगर इतनी बुरी चीज भी नही है
रसीद नही मिलती इसकी पक्की चीज नही है
दिल विल टूटने का खतरा बना रहता है और क्या
ये मोहब्बत ओहब्बत कोई अच्छी चीज नही है

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    नमस्कार, कागज पर आडि तिरछी लकीर के समान कुछ पांच छह महीने में जो थोड़े बहोत मुक्तक लिख पाया हूं उन्हें आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं

लोकतंत्र के गाल पर एक और थप्पड अच्छा नही होगा
मां भारती के रखवालो पर अब एक और पत्थर अच्छा नही होगा
हिन्दुस्तान के बाहर भीतर के दुश्मनों गद्दारो कान लगाकर तुम ये सुनलो
भारतीय फौज के सब्र का बांध टूटेगा तो अच्छा नहीं होगा

एक तो सीट हरा के आया है
दुसरा पैसा गवा के आया है
आईना देख लेता चुनाव लड़ने से पहले
अपनी जमानत तक बचा न पाया है

तो फिर जंगे मैदान में आते क्यों हो
अमन की बात करते हो तो फिदायीन हमले करवाते क्यों हो
तुम तो कहते हो के भारतीय वायुसेना ने कुछ दरख़्त मार गिराए हैं बस
तो फिर टूटे दरख्तों का इंतकाम लेने भारतीय सीमा में आते क्यों हो

खुद अपनी शख्सियत मिटाने में डर लगता है
फिर से दिल लगाने में डर लगता है
बड़ी जतन से एक बार जला पाया हूं
अब ये चिराग बुझाने में डर लगता है

यहां हर एक का इमान आजमाकर बैठा हूं
इसलिए बाजार में अपनी कीमत लगाकर बैठा हूं
बो चाहता था के मोहब्बत के बहाने से मेरा सब कुछ लूट ले जाए
इसलिए मै खुद ही सब कुछ गवाकर बैठा हूं

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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

मुक्तक, हमे शिकार करना आता है

    नमस्कार , आज जो भारतीय वायुसेना ने POK में आतंकवादी संगठनों के ठिकाने को 1000 किलो से ज्यादा के बम गिराकर तबाह किए हैं और बहुत भारी संख्या में आतंकवादीयो का सफाया किया है ये हमारे देश के 14 फरवरी को हुए पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीद CRPF के वीर अमर जवानों को हमारे देश की सच्ची श्रद्धांजलि है | भारतीय सेना एवं वायुसेना के सम्मान में मैने ये चार मिसरे आज कहे हैं के

सब के साथ मिलजुलकर रहना भी आता है
अमन की बात कहना और सुनना भी आता है
हम मां भारती के शेर हैं हमे जो छेड़ो तो याद रखना
हमे पलटकर गीदड़ भेडियों का शिकार करना भी आता है

कुछ दिनों पहले ये चार मिसरे भी हुए थे के

हमें चैन की नींद सोना भी नहीं चाहिए
हम मां भारती के वीरों को अपना धैर्य खोना भी नहीं चाहिए
आतंकवाद , अलगाववाद और आतंकवादियों का विनाश हर कीमत पर जरूरी है
क्योंकि दुनिया में पाकिस्तान जैसा आतंकवादी मुल्ख होना भी नहीं चाहिए

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